धर्म ध्यान कैसे दृढ़ बने?

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शंका

आज के इस आपाधापी के युग में सत्संग के कितने भी करीब क्यों न रहें, वह सत्संग प्रसूति वैराग्य या श्मशान वैराग्य की तरह हो जाता है। थोड़ी देर के लिए तो लगता है कि बहुत अच्छी बात है, ऐसे जीवन करना चाहिए, लेकिन फिर अपने घर-गृहस्ती के चक्कर में अथवा जिम्मेदारियों को समझने में फिर भूल जाते हैं, धर्मध्यान कर नहीं पाते। धर्म ध्यान कैसे दृढ़ बने?

समाधान

सत्संग समागम करने के बाद क्षणिक वैराग आता है, लेकिन इसके बाद व्यक्ति अपनी रो में बहने लग जाता है। बहुत यथार्थ बात है, पर मैं इसको कभी भी नकारात्मक तरीके से नहीं देखता, मैं सोचता हूँ कम से कम क्षणिक वैराग्य तो आता है। दुनिया के लोग तो इतने पक्के हैं कि सब कुछ होने के बाद भी कुछ फर्क नहीं पड़ता। इस क्षणिक वैराग्य की शुरुआत हो गई तो समझना बीजारोपण हो गया। आज का यह क्षणिक बैराग कल के स्थायिक वैराग्य के रूप में परिवर्तित हो जाएगा। वैराग बोध होने के बाद भी मन आगे नहीं बढ़ता- केवल इसलिए क्योंकि हमारे पुराने संस्कार बहुत जटिल हैं। उन संस्कारों को निर्मूल करना आवश्यक होगा, जब हम उन संस्कारों का निर्मूल करेंगे तभी आगे बढ़ेंगे।

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