शंका
जब भी किसी वृक्ष को कुल्हाड़ी से काटा जाता है, तो उस कुल्हाड़ी का पिछला हिस्सा लकड़ी का ही होता है। जब किसी इंसान के साथ में बुरा होता है, तो उसके पीछे किसी अपने का ही हाथ क्यों होता है?
समाधान
यह तो स्वभाव है। काटने के लिए बेंट कोई अपना ही बनता है। अपनों का ही आघात होता है अपनों से ही नुकसान होता है। कहते हैं ‘घर का भेदी लंका ढाए’ यही कमजोरी है। यह होना नहीं चाहिए। जब तक मनुष्य के हृदय में पवित्रता न आये, प्रेम न आये, ईर्ष्या, वैमनस्य और विद्वेष का भाव न हो तब तक इस प्रकार की घात प्रतिघात की वृद्धि से बचना सम्भव नहीं है।
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