मेरे विद्यालय में कई ऐसे विद्यार्थी पढ़ते हैं, जो अपने लंचबॉक्स में नॉन वेज भोजन लाते हैं और कई जैन लड़के उनके लाये हुए भोजन को खाते हैं। वे मुझसे कहते हैं कि ‘मैं उसका दोस्त क्यों नहीं बनता?’ और शिक्षक लोग भी ऐसा ही कहते हैं। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए?
देखिये, यह आज के समाज की तस्वीर है। यह बच्चा ५वीं कक्षा में पढ़ता है और यह कह रहा है कि इसके स्कूल में पढ़ने वाले अजैन बच्चे अपने लंचबॉक्स में नॉनवेज लाते हैं, और उस नॉनवेज को जैन बच्चे भी खा रहे हैं। देखें, समाज कहाँ जा रहा है! ये ५वीं कक्षा का बालक है, ऐसे अन्य कई बच्चे और भी होंगे और उसने मुझे बताया है कि इसके साथ पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे खाते हैं, जिनकी उनसे दोस्ती है, उन्हें दोस्ती के नाम पर यह चीजें खाई जाती हैं, खिलाई जाती हैं, जिसे टीचर्स भी प्रेरित करते हैं। जो बच्चे इतनी कम आयु एक बार इन्हें खाना शुरू कर देंगे, जिंदगी में फिर कभी शाकाहारी नहीं बन पाएँगे। मैं देशभर के सभी अभिभावकों से कहना चाहता हूँ कि आप अपने बच्चों की केवल शिक्षा की ही चिन्ता न करें, उनके संस्कारों को भी ध्यान में रखे, उनके धर्म को भी ध्यान में रखें।
यह जहाँ से पढ़ने आया है वहाँ के लोग भी इस कार्यक्रम को सुन रहे होंगे। यह तो केवल एक उदाहरण है आप जाइये, जाकर पूछ-ताछ कीजिये जहाँ आप अपने बच्चों को पढ़ने भेजते हैं, वहाँ कहिए, और अपने बच्चों को भी कहिये, कि जो बच्चे नॉनवेज लेकर आते हैं उनके साथ अपना टिफिन साझा न करें। और साथ ही ऐसे स्कूलों में आप अपने बच्चों को प्रवेश दिलाएँ जहाँ नॉनवेज पर प्रतिबंध हो, वहाँ टिफिन में नॉनवेज लाने पर भी प्रतिबन्ध हो। आप यह देखते हैं कि स्कूल का स्टैंडर्ड कैसा है? आप यह नहीं देखते कि स्कूल में संस्कार कैसे हैं? क्या आप चाहते हैं अपने बच्चों को माँस खिलाना? क्या आप चाहते बच्चों को अंडा खिलाना? क्या आप चाहते हैं अपने बच्चे का धर्म विनष्ट करना? जो बच्चे इस आयु में ऐसे पथभ्रमित हो जाएँगे, पथभ्रष्ट होंगे, उनका भविष्य में क्या होगा? यह गम्भीर चिन्ता का विषय है और इसके लिए सभी जैन लोगों को सभी अहिंसक शाकाहारी लोगों को इस बात के लिए जागरूक होना चाहिए।
आज भी ऐसे बहुत सारे विद्यालय हैं जहाँ नॉनवेज की बात तो जाने दीजिए जमीकंद नहीं दिया जाता। हजारीबाग में एक नमन विद्या मन्दिर है, रिंकू गंगवाल उसे संचालित करता है, ५ स्टार स्कूल है, बहुत अच्छा पैकेज है, लॉजिंग बोर्डिंग की पूरी सुविधा है रु १००,००० से ऊपर की उसकी फीस है। लेकिन उनके यहाँ ग्रीन वेजटेबल्स के आलावा सब कुछ निषिद्ध है। अगर बच्चे अपना लेकर आए तो और वहाँ इस विद्यालय में मिले तो ग्रीन वेजिटेबल मिलेगा बाकी और कुछ नहीं और वह स्कूल बहुत अच्छे तरीके से चल रहा है। लोग पैरवी करा करा कर उस विद्यालय में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाते हैं। गुणवत्ता युक्त शिक्षा के साथ संस्कारों और सरोकारों का जहाँ ध्यान रहे, आप अपने बच्चों का एडमिशन वहीँ कराइए।
जिस जगह बच्चों के साथ ऐसी स्थितियाँ बनती है आप अगर अपने बच्चों का भविष्य उज्जवल बनाए रखना चाहते हैं और अपने घर में जैन धर्म की ज्योति को जलता हुआ देखना चाहते हैं, तो बिलकुल अगले सत्र से उस स्कूल से अपने बच्चों को निकाल लीजिए। नहीं तो, आपका बेटा जैन केवल नाम का रहेगा उसके भीतर जैनत्त्व नहीं बचेगा।
बहुत गम्भीरता से सोचना चाहिए। आजकल सब प्रकार के बच्चे सभी स्कूलों में जाते हैं। संगति गलत होने से संस्कार बिगड़ जाते हैं। इस छोटे से अबोध बच्चे के मन में क्या बीतती होगी? ये तो इसके माँ बाप के अच्छे संस्कार हैं। मैं इसकी माँ को धन्यवाद दूँगा जो अपने बच्चों को ऐसा संस्कार दिया कि वो अभी तक भटक नहीं सका।और बेटा तुझे आशीर्वाद है कि कभी आगे भी मत भटकना बल्कि जो बच्चे खाते हैं उनके माता-पिता से कहना की- “आपका बेटा भटक रहा है, जैन होकर जैन धर्म पर कलंक लगा रहा है, उसको पापमुक्त कराइये।” जब उनके माता पिता यह को पता लगेगा तब उनको समझ में आएगा कि उन्होंने कहा गलतियाँ की, और बदलाव आएगा।
समाज में इस दिशा में व्यापक जागरूकता की आवश्यकता है। ये बहुत पीड़ादायक विषय हैं, हम कहाँ जा रहे हैं? कहाँ हम रात्रि भोजन के त्याग की बात करते, आलू आदि जमीन कंद के त्याग की बात करते और कहाँ ये नॉनवेज? वो भी इतने अबोध बच्चों के साथ! कहाँ जायेगा समाज? आने वाली पीढ़ियों का क्या होगा? समाज के संभ्रांत वर्ग में सबसे ज़्यादा बीमारी है, उनको सोचना चाहिए। और समाज को ऐसे विद्यालयों की स्थापना करनी चाहिए तथा ऐसे विद्यालयों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जो हमारे अहिंसा एवं शाकाहार जैसे मूल्यों को प्रोत्साहित करते हों, अन्यथा सब गड़बड़ा जाएगा। आज बैनालाजी ने बोला कि हमारे बहुत सारे बच्चे आजकल ऐसे स्कूलों में जाने लगे हैं जहाँ बिल्कुल विरुद्ध सभ्यता वाले लोग आते हैं, उनके बच्चे आते हैं, एक दूसरे से घुलमिल जाते और गड़बड़ हो जाता है, लव जिहाद जैसे दुष्परिणाम सामने आते हैं। इसके लिए पहले से सावधान रहिये। हमारे बच्चों को कहाँ रखना, इसका ध्यान रखें नहीं तो आगे बहुत बुरा समय आने वाला है। यह तो सुनकर मेरे रोंगटे खड़े होते हैं, ये अच्छी बात नहीं है।बहुत अच्छी बात पर तुमने ध्यान दिलाया है इसको एक अभियान बनाओ। छोटे हो पर एक अच्छा कार्य करो और मैं तुम्हारे साथ पूरे समाज से कहता हूँ, अशोकनगर समाज में जागरूकता लाओ, जिस विद्यालय में ये बच्चा पढ़ता है उसके मैनेजमेंट से भी बात करो कि इस तरह का कार्य करना कतई उचित नहीं है। “Ban करो नॉनवेज पर नहीं तो हम सब जैन बच्चे वहाँ से निकल लेंगे” अभियान करो।
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