किसी व्यक्ति की संगत अच्छी न हो पर वह व्यक्ति जागरूक हो, क्या तो भी उस पर संगति का प्रभाव पड़ेगा?
“संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति”। यह सामान्य कथन है। गलत संगत में अगर व्यक्ति जागरूक हो तो बच सकता है। लेकिन फिर भी व्यक्ति को चाहिए कि यथासम्भव गलत संगति से बचे।
हमारे यहाँ एक उदाहरण आता है- एक मुनिराज जिन्होंने वेश्या के यहाँ चातुर्मास किया। वो वेश्या से प्रभावित नहीं हुए। वेश्या का हृदय परिवर्तन उन्होने कर दिया। अगर व्यक्ति खुद में मज़बूत है, तो संगति उसके लिए मायने नहीं रखती। जैसा की कल मैंने अपने प्रवचन में कहा था- कच्चा नारियल कभी भी फूट सकता है, उसके टुकड़े हो जाते हैं पर पक्का नारियल हमेशा साबुत बना रहता है। जो साधना के क्षेत्र में प्रखर, संकल्प के क्षेत्र में पक्के और संस्कार के क्षेत्र में मजबूत होते हैं उन पर संगति का असर नहीं पड़ता। लेकिन जो कच्चे होते हैं उन्हें अपनी संगति का पूरा-पूरा ख्याल रखना चाहिए।
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