गरबा नृत्य पहले गुजरात में प्रचलित रहा है पर आज के समय में वह हमारी समाज में बहुत तेजी से फैल रहा है और जो हमारी नवीन पीढ़ी आ रही है वह उसे धर्म से विमुख कर रहा है, इसको कैसे रोका जा सकता है?
गरबा आज एक बहुत ही गम्भीर मुद्दा हो गया है। मीडिया ने इसे बहुत ज़्यादा उछाल दिया और गरबा एक रास है। यह रास भक्ति का अंग नहीं बल्कि यह मौज-मस्ती का अंग हो गया है। इसका प्रारम्भ भक्ति के रूप में रहा होगा लेकिन वर्तमान में उसमें घोर विकृतियाँ आ गईं। इसके सन्दर्भ में जो रिपोर्ट हैं वह बड़ी वीभत्स हैं। इस गरबा के कारण कई परिवारों की पवित्रताएँ खत्म हो गई, समाज की मर्यादाएँ नष्ट हो रही हैं। इस तरह के नित्य गान के कार्यक्रम में शामिल होने की आजादी पाने के पीछे कई घरों में रोज तकरार हो रही है, यह ठीक चीज नहीं है।
धार्मिक दृष्टि से तो यह ठीक है ही नहीं, हमारी सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह कतई ठीक नहीं है क्योंकि आज जो इसका स्वरूप बन गया है, वह कतई हमारी संस्कृति के अनुकूल नहीं है। पहले भक्ति की जाती थी तो देव प्रतिमा के सामने की जाती थी और विशुद्ध भाव से की जाती थी। अब तो अलग-अलग जोड़ियाँ इसको मिलकर करती है और उसके जो रूप देखने को मिलते हैं, वह बहुत अच्छे नहीं होते। एक रिपोर्ट मुझे बताई गई कि पूरे के पूरे गुजरात और खासकर मुंबई जैसे इलाके में गरबा के आश्विन के ३ माह बाद गर्भपात की सबसे ज़्यादा संख्या होती है यानी कि जनवरी, फरवरी के माह में सर्वाधिक गर्भपात होता है। यह अगर रिपोर्ट सही है, तो समाज को समझने के लिए एक बहुत बड़ा संकेत है कि आखिर यह समाज किस दिशा में जा रही है? इसका क्या परिणाम हो रहा है? हमें इससे अपनी पीढ़ी को पूरी तरह बचाकर रखना चाहिए।
कई लोगों ने इसे बचाने के लिए एक दूसरा उपक्रम किया कि अपने परिसरों में ऐसे आयोजन करने लगे ताकि लोग इधर भटकाव से बचें। मीडिया के इस प्रभाव से अपने आप को बचाएँ। हालाँकि, यह भी बहुत प्रशंसनीय कदम नहीं है। फिर भी यदि अच्छी दृष्टि से ऐसा करते हैं और हम अपने लोगों को भटकने से बचाने के लिए करते हैं तो मैं इसे कदाचित गलत नहीं कहूँगा पर फिर भी यह हमारी संस्कृति के अनुकूल नहीं है।
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