विश्वास और अन्धविश्वास में क्या अन्तर है? कब विश्वास अन्धविश्वास बन जाता है और अन्धविश्वास को विश्वास में कैसे बदले?
विश्वास का मतलब होता है जिसके प्रति हमने विश्वास किया उसे अपने जीवन का आदर्श मानकर अपने जीवन का कल्याण करें और अन्धविश्वास का मतलब होता है बस विश्वास कर लिया मेरा कल्याण होगा, दोनों में अन्तर है।
विश्वास में हम एक आदर्श अपने सामने उपस्थित रखते हैं और उससे प्रेरणा पाकर खुद अपना कल्याण करते हैं; और अन्धविश्वास ऐसा है कि जिसको हमने अपना आदर्श बना लिया वो मेरा कल्याण कर देगा। भगवान पर मेरा विश्वास है, भगवान मुझे पार लगा देंगे चाहे हम कितने भी पाप करें– यह अन्धविश्वास है।
भगवान की शरण में मैंने स्थान पा लिया, भगवान की मुझे शरण मिल गई, मैंने भगवान के चरणों का सानिध्य पा लिया, अब मेरा इस संसार में बाल बाँका नहीं होगा क्योंकि मैं भगवान के मार्ग पर चलने वाला हूँ, भगवान का अनुयायी हूँ। जो भगवान को पसन्द नहीं हो वो कभी नहीं करूँगा– यह विश्वास है।
विश्वास और अन्धविश्वास इसमें बारीक़ अन्तर है केवल विश्वास मना कर के बैठ जाना और पुरुषार्थी न होना अन्धविश्वास है और उस विश्वास से प्रेरित होकर अपने जीवन को आदर्श की और आगे बढ़ाना सच्चे अर्थों में विश्वास है।
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