बिना धर्म के सुमरण नहीं होता!

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शंका

क्या बिना पुण्य के मरण सुमरण नहीं हो सकता? बुजुर्गों को अस्पताल में दाखिल करने के बाद न उन्हें धर्म का कुछ सुना सकते न गन्धोदक लगा सकते हैं ऐसे में मन दुखी हो जाता है।

समाधान

ये ज़्यादा पुण्य होने का कुपरिणाम है। बिना धर्म के सुमरण नहीं होता। जिनका ज़्यादा पुण्य होता है न उनके बच्चे लोग अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए उनको हॉस्पिटल में दाखिल करते हैं, उनके कल्याण के लिए नहीं। पता है, डॉक्टर भी कह रहे हैं अब ज़्यादा समय नहीं लेकिन फिर भी लगाए रखो, वेंटिलेटर पर लटकाये रखो, मरे को मारते हैं, वो सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए। सच्चा सुपुत्र, सच्ची सन्तान वो होते हैं जो अपने मां-बाप का कल्याण चाहते हैं, उनका उत्थान चाहते हैं, वो नहीं चाहते कि अस्पताल में मेरे मां-बाप को जाना पड़े। वो अन्त में णमोकार सुनाते हुए, भगवान का नाम स्मरण कराते हुए इस दुनिया से विदा करने का प्रयास करें। वह लोक दिखावा में न पड़ें कि मेरे पास पैसा है, हमने उनका इलाज नहीं कराया- ये गलत रोना है; ऐसा करके तुमने उनके जीवन भर के उपकारों को पानी में फेर दिया। वह तो अशक्त हो गए, उनके पास तो कुछ बोलने की, कहने की क्षमता नहीं लेकिन सन्तान जो इस तरह की गड़बड़ी करती है, यह चीज ठीक नहीं है। मैं तो यह कहना चाहता हूँ कि अगर आप योग्य सन्तान के रूप में जीना चाहते हैं और अपने माँ-बाप की, अपने घर के बुजुर्गों की, अपनी खुद की सद्गति चाहते हो अपनी सन्तानों को यह पहले से सीख दो कि मेरा जब अन्त समय आए तो मुझे डॉक्टर के पास नहीं गुरु के पास ले जाना। अभी से बोल कर रखो और समाज को भी बोल दो कि मैं अभी से कहता हूँ मेरे बच्चों को इस बात का कोई दबाव नहीं डालना। हमें इस दुनिया से विदा होना है, तो सीधे भगवान के रास्ते पर चलना है, किसी दूसरों के रास्ते पर नहीं। यदि इस तरीके से आप लोग चलेंगे तो एक अच्छी परम्परा की शुरुआत होगी। मैंने देखा है, जीवन भर धर्माचरण करने वाले बहुत सारे लोग अन्त में धर्म खो करके इस दुनिया से जाते हैं जो उनके जीवन की बहुत बड़ी चूक होती है।

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