भावों से होनी वाली त्रुटि का प्रायश्चित कैसे ले सकते हैं?

150 150 admin
शंका

भावों और नियम का बहुत महत्त्व है। अगर हम कोई नियम लेते हैं और उसमें कुछ त्रुटि हो जाती है, तो उसका प्रायश्चित्त लेना पड़ता है, तो क्या भावों के लिए भी ऐसा है? अगर किसी चीज का भाव पूरा नहीं किया या उसमें किसी तरह की कमी या त्रुटि हो गई तो उसके लिए भी कोई प्रायश्चित्त लेना पड़ता है?

समाधान

भाव में यदि अच्छाई है, तो पुण्य कमाते है और बुराई है, तो पाप। यदि हमने कोई प्रतिज्ञा ली और हमारे भाव में शिथिलता आई, हमने प्रतिज्ञा तोड़ी नहीं लेकिन भाव में शिथिलता है इसको बोलते हैं अतिक्रम ये एक दोष है। यदि हम उसको अनदेखा करेंगे तो धीरे-धीरे ऐसी स्थिति आयेगी कि जो भाव में क्षति हुई वह आगे बढ़ते-बढ़ते क्रिया भी क्षति हो जायेगी और हमारा व्रत टूट जायेगा। जब कभी भी हमारे भावों में गिरावट आती है, तो भगवान के साक्षी में जाकर अपनी निंदा-गर्हा करना चाहिए। “हे भगवान मैंने यह सोचा, मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए, मैंने बहुत बड़ा पाप किया है, मेरा ये पाप मिथ्या हो। इसी अतिक्रम से बचने के लिए प्रतिक्रमण किया जाता है, और यह प्रतिक्रमण हमारे चित्त की शुद्धि में कारण बनता है।

Share

Leave a Reply