शंका
आत्मा का अहित करने वाले विषय और कषाय हैं। पहले कषाय से विरक्ति होनी चाहिए या विषयों से?
समाधान
कषाय के कारण विषयों की ओर आकर्षण होता है और विषयों के कारण कषाय बनते हैं तो किसको छोड़ें? प्रथम चरण में विषय छोड़े जाते हैं, बाद में कषाय छूटती है। हाँ, जब तक कषाय मंद नहीं होती तब तक विषय छोड़ने का भाव नहीं होता। लेकिन बुद्धिपूर्वक किसे छोड़ते हैं? पहले पाप छोड़ा जाता है फिर निष्कषाय भाव होता है। विरत बनते हैं, पाप यानी पंचइन्द्रिय के विषय को छोड़ा तो विरत भाव तो छठे गुणस्थान में आ जाता है। निष्कषाय भाव ११वें एवं १२वें गुणस्थान में होता है। इसलिए जो कहते हैं कि “पहले कषाय छोड़ो”– कषाय जब छूटेगी, तब छूटेगी, जो तुम्हारे बस में है उस विषय को तो छोड़ ही दो, तभी आगे बढ़ पाओगे।
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