मन के परिष्कार के लिए आत्मिक सम्बोधन की आवश्यकता होती है?
मन के परिष्कार के लिए आत्म सम्बोधन बहुत सशक्त माध्यम है। वस्तुत: हमारे जीवन में पर के सम्बोधन से जो प्रभाव पड़ता है, स्व के सम्बोधन का प्रभाव उससे अनन्त गुना अधिक होता है। क्यों? पर के सम्बोधन को हम स्वीकार करें, जरूरी नहीं पर स्व का सम्बोधन हमारा मन सहज रूप से स्वीकार करता है, तो मन को सम्बोधन दे। क्या सम्बोधन दें? अगर मन किसी गलत दिशा में जा रहा है, तो मन को समझा, “अरे तू कहाँ जा रहा है? तुझे पता नहीं, मैंने अपनी कौन सी बाउंड्री तय कर रखी है? ये मेरी सीमा है, इस सीमा का उल्लंघन करके जाओगे तो बहुत गलत हो जाएगा। मैं एक सभ्य, संस्कारी परिवार में जन्म लेने वाला हूँ, मैं एक मर्यादित जीवन जीने वाला व्यक्ति हूँ, मुझे लोक में एक धार्मिक व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। मेरी यह सीमाएँ हैं कि मैं धर्म की मर्यादा, जाति की मर्यादा, कुल की मर्यादा, समाज की मर्यादा को सुरक्षित रखूं और तू उधर जा रहा है। यह गलत बात है, मैं इसे स्वीकार नहीं करूँगा। अगर तू उधर जाएगा उसका अंजाम क्या होगा?” मन संभल जाएगा। इसको बोलते हैं मन को स्व का संबोधन।
मन में गुस्सा आ रहा है और जिस समय गुस्सा का उफान आ रहा है मन को समझाओ- “अरे मन! क्या करने जा रहा है? पता है इसका परिणाम क्या होगा? एक क्षण के गुस्से का अंजाम बहुत खतरनाक होगा, अगर इस गुस्सा पर मैंने नियंत्रण नहीं किया, इस गुस्से में मैंने कुछ उल्टा-सीधा बक दिया तो क्या दुष्परिणाम होगा? नहीं, मुझे गुस्सा नहीं करना है, शान्त रहना है। मुझ जैसा सत्संगी भी अगर इस तरह का गुस्सा करेगा तो लोग क्या करेंगे, कहाँ सीखेंगे?” मन शांत हो जाएगा। अन्तरंग की आवाज को जागृत करके मन को सम्बोधित किया जा सकता है लेकिन यह सम्बोधन करने में वे ही समर्थ हो सकते हैं, जो अपने मन में ऐसा अभ्यास जागृत करते हैं। स्वस्थ अवस्था में रोज स्व का सम्बोधन करो तब आप पटरी से उतरते समय अपने मन को संबोधने में समर्थक होंगे।
इसका एक बड़ा अच्छा प्रैक्टिकल कर सकते हो, रोज शाम को बैठो। घर के कार्यों से फारिग होने के बाद एक स्थान पर बैठो, बन सके तो भगवान के मन्दिर में जाकर बैठो और दिन भर के विचारों को रीकॉल करो और यह देखो कि “मैंने आज सुबह से शाम तक क्या किया, क्या सोचा, क्या बोला और उसमें जो जो गलत बोला उसको संशोधित करो कि इस समय मैंने ऐसा बोला, इसकी जगह ऐसा बोला होता तो ज़्यादा अच्छा होता। आइंदा अब जब कभी भी ऐसा प्रसंग आएगा, ऐसा नहीं बोलूँगा, हे भगवान मेरे पाप मिथ्या हों। उस समय मैंने ऐसा सोचा, मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए था, खामखा मैं किस नेगेटिव धारा में चला गया, वह तो मेरे लिए उपकारी बन कर आ रहा था मैंने उसे अपना शत्रु मान लिया। भगवान, आज के बाद ऐसी शक्ति दो, जल्दबाजी में मैं नकारात्मक दिशा में नहीं जाऊँ। मैंने उसके साथ ऐसा साथ व्यवहार किया, उसकी जगह मैंने अगर अपने मन में थोड़ा धैर्य रखा होता, समझदारी का परिचय दिया होता तो हमेशा के लिए मेरा कायल हो गया होता। आज के बाद में ऐसा असद व्यवहार नहीं करूँगा।” यह फीडिंग अपने मन को दे दो और मन ही मन यह संकल्प लो- “आज के बाद मुझे ये क्रियायें नहीं करनी हैं, मुझे यह बात नहीं बोलनी है, इस तरह की भाषा का प्रयोग नहीं करना है, इस तरह के विचारों से अपने आपको प्रभावित नहीं करना, यह फीडिंग मन में अगर हो गई रोजमर्रा की जिन्दगी में तो थोड़े दिन में तुम्हारे जीवन में जबरदस्त बदलाव होगा और जब कभी भी तुम पटरी से उतरने को होगे, तुम्हारे मानस पटल में ये वाक्य उभरेगा- “अरे मैंने तो संकल्प लिया था मुझे यह कार्य नहीं करना”- तुरन्त मन रुक जाएगा।
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