आजकल जहाँ कहीं भी पंचकल्याणक होता है, वहाँ का जैन समाज चौबीसी भगवान की स्थापना करता है, लेकिन २४ भगवान का पूजन अभिषेक नहीं कर पाते। क्या इस तरह से चौबीसी की स्थापना करना क्या उचित है?
श्री जी की प्रतिष्ठा कराना एक अच्छा कार्य है और आप जितना अधिक करायें उतना अच्छा है; लेकिन भगवान की प्रतिष्ठा करा कर उनको भगवान के भरोसे छोड़ देना अच्छी बात नहीं। भगवान की प्रतिष्ठा करायें, हम भगवान की प्रतिष्ठा करते हैं पूजन पाठ के लिए आराधना के लिए! आप उसके लिए समय निकालें, पूजन पाठ करें, आराधना करें, वन्दन करें। यदि दर्शन वन्दन करने की अनुकूलता नहीं है, तो इतने व्यापक स्तर पर प्रतिष्ठा कराने का कोई औचित्य नहीं है। हालाँकि, शास्त्रों में यह भी विधान मिलता है कि जिनबिंब की स्थापना कर देना मात्र नित्य पूजा है क्योंकि एक व्यक्ति जिनबिंब की स्थापना करता है, तो उसके निमित्त से हजारों लाखों लोग युग युगांतर तक उनका दर्शन पूजन वन्दन करते हैं। जब तक उनके दर्शन पूजन वन्दन की व्यवस्था हो रही है उसका पुण्य उस विराजमानकर्ता को प्राप्त होता है जिसके निमित्त से यह व्यवस्था हुई है। इसलिए कहीं भी श्रीजी की स्थापना करने का मौका आए तो उत्साह से स्थापना करो और अगर वहाँ आप उपस्थित हैं तो भगवान की पूजन आराधना अवश्य करें।
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