हमें जिंदगी किस सोच के साथ जीनी चाहिए? क्या करें जिससे किसी का हमारे प्रति दुर्भाव न रहे एवं लोग हमसे खुश रहें?
कोई बीज तब सार्थक होता है जब वह वृक्ष बनता है, उस वृक्ष में फिर से फूल और फल लगते हैं और एक बीज अनेक बीजों को जन्म देता है। बीज जब फल के रूप में विकसित होता है तब बीज सफल और सार्थक होता है। हमने यह मनुष्य जीवन पाया, हमारी जिंदगी तभी सफल और सार्थक होती है जब हम इस जीवन के फल को प्राप्त कर पाते हैं। मनुष्य के अन्दर मनुष्यता की प्रतिष्ठा ही जीवन का फल है। हम थोड़ी और गहराई में जायें तो भवस्य सारं किं? व्रत धारणम च। – व्रत और संयम को अंगीकार करके मनुष्य अपने जीवन को सार्थक और सफल बना सकता है। हमारे मनुष्य जीवन की सार्थकता भोग और विलासता में लीन होने में नहीं है, मनुष्य जीवन की सार्थकता त्याग और साधना के मार्ग को अंगीकार करके अपने जीवन को शुद्ध और निर्मल बनाने में है।
लोगों के अन्दर का अशुभ भाव दूर करने के लिए हम अपने स्वभाव को और गहरा बनायें और ऐसा प्रेमपूर्वक व्यवहार उसके साथ करें कि उसके अन्दर की कलुषता धुले और उसके अशुभ भाव, शुभ भाव में परिणत हो जाए। कदाचित् ऐसा नहीं होता तो कम से कम इतना करें कि सामने वाले के अशुभ भाव से हम अपने आप को अप्रभावित रखने की क्षमता विकसित कर लें तो हमारी सुरक्षा हो।
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