शंका
जैन समाज में भी शारीरिक रूप से या मानसिक रूप से विकृत या अपंग जीव परिवार में हो जाता है, उस परिवार के लोग उसके कर्मों को कैसे क्षय करें?
समाधान
विकृतांग, विद्रूपता और विकलांगता अशुभ-नाम कर्म के उदय का फल है। जो दूसरों के अंगों- उपांगों का छेदन करता है, विकलांगों को देखकर उनका मजाक उड़ाता है, उनका उपहास करता है, उनकी खिल्ली उड़ाता है; और प्रायः असद प्रवृत्तियाँ करता है, खोटे कार्य करता है, मिलावट जैसे कृत्य करता है उनको ऐसी विकलांगता आती है।
जिनको ऐसा हुआ है उनको चाहिए कि अधिक से अधिक पात्र दान दें, जिन पूजा करें। ये दो ऐसे निमित्त हैं जो उनके महान पुण्य के संचय में कारण बनता है और उनके भावी जीवन को सम्भाल सकता है।
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