मैं दर्शनशास्त्र की विद्यार्थी हूँ। मैंने पढ़ा अनेकांतवाद और स्याद्वाद दर्शनशास्त्र के मुख्य सिद्धान्त हैं, जब हम लोग उसकी विवेचना करते थे तो अन्य दर्शन वाले उसका खंडन-मंडन करते थे। वे कहते थे कि “आपके अनुसार अनेकांतवाद का अर्थ है हर चीज का अलग-अलग दृष्टिकोण होना। लेकिन जब आप हमारे दर्शन को मिथ्या कहते हो तो आप एकांतवादी हो जाते हो” आप हमें मार्गदर्शन दे?
अनेकांत का मतलब यह नहीं है कि हमको सबकुछ समदृष्टि से स्वीकार लें। सूरज पूरब में उगता है, जो हमारे लिए सूरज है वह चीन के लिए पश्चिम होगा; लेकिन चीन का जो सूरज उगेगा, वह चीन के पूरब में होगा, इसका नाम है अनेकांत! लेकिन सूरज को पूरब में उगाने के साथ पश्चिम में भी उगा देना यह अनेकांत आभास है। जो सच है वह सच है और जो झूठ है वह झूठ है। सच, सच की दृष्टि से सच है। झूठ, झूठ की दृष्टि से झूठ है। आप यदि माँ हो तो अपने बेटे की माँ ही हो, लेकिन आप बेटी हो तो अपनी माँ की बेटी हो। बेटी भी हो, माँ भी हो लेकिन आप कभी माँ, कभी बेटी नहीं। माँ के लिए सदैव बेटी हो और अपनी बेटी के लिए सदैव माँ हो, इसी का नाम अनेकांत है, इसे जो समझ ले उसे कोई भ्रम नहीं होगा।
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