शुद्ध भोजन और अशुद्ध भोजन मन पर क्या प्रभाव डालता है और एक धर्मात्मा का भोजन कैसा होना चाहिए?
भोजन का मन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।
ऐसा कहते हैं कि ‘जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन। जैसे पीवे पानी वैसी होवे वाणी।’
जैसा अन्न खाओ, वैसा मन होगा और जैसा पानी पीओगे वैसी वाणी होगी। यह हम कहते हैं और इस पर तो काफी रिसर्च भी हुए हैं। अमेरिका में इस बात पर काफी रिसर्च हुए हैं कि मनुष्य के भोजन-पानी का उसके मन से बड़ा गहरा सम्बन्ध है। इसलिए हमें अच्छा भोजन करना चाहिए। हमें महाभारत के उस प्रसंग को कभी नहीं भूलना चाहिए जब भीष्म पितामह शरशैया पर थे, तब वह उपदेश दे रहे थे। द्रौपदी ने उनसे कहा कि “उस समय आपकी बुद्धि कहाँ चली गई थी जब भरी सभा में मेरा चीरहरण हो रहा था।” तब उन्होंने कहा कि “उस समय मैं इसीलिए कुछ नहीं बोल पाया क्योंकि मेरी बुद्धि जड़ताक्रान्त हो गई थी क्योंकि मेरे अन्दर पापियों का अन्न था। अब मेरे रक्त के प्रवाह से पापी का खून चला गया इसलिए मेरी बुद्धि निर्मल हुई।”
तो जैसा आप खाओगे वैसा मन होगा इसलिए एक धर्मात्मा को शुद्धता के साथ, सात्विकता के साथ, सुपाच्य भोजन ग्रहण करना चाहिए।
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