जिस प्रकार हम व्यापार में वार्षिक बैलेंस शीट से लाभ-हानि पता करके, बीते वर्ष के नुकसान की भरपाई के लिए आने वाले साल में कमाई करने की सोचते हैं, उसी प्रकार हमारे जीवन जो में पाप और पुण्य कर्म साथ चलते हैं, यदि इसका भी वार्षिक हिसाब-किताब हमें मालूम हो तो हम अनजाने में हुए पापों को भी, पुण्य में बदल सकते हैं?
वैसे बात बिल्कुल सही है। आप लोग अपनी व्यापारिक बैलेंस शीट पर हमेशा ध्यान देते हैं और थोड़ा बहुत भी कुछ गड़बड़ होता है, तो उसको रिकवर करने की चेष्टा करते हैं। इसी तरह यदि आप अन्दर के बैलेंस शीट के तरफ ध्यान देंगे तो ऐसा किया जा सकता है बल्कि भीतरी बैलेंस शीट में ये सारा सिस्टम भी है। आप ऐसा कर सकते हैं, किया जा सकता है। विडम्बना यह है कि हम लोग उसको करना नहीं जानते, उस बैलेंस शीट की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं है। हमारा कर्म शास्त्र कहता है कि हम अपने पाप को पुण्य में भी परिवर्तित कर सकते हैं। हम अपने पुण्य की वृद्धि भी कर सकते हैं और हम अपने कृत्यों से अपने पुण्य को पाप में भी परिवर्तित कर सकते हैं। पुण्य का क्षय भी कर सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं। यहाँ सारा क्रेडिट-डेबिट सब हो सकता है। कुछ उदाहरण में आपको देता हूँ तो यह बात ज़्यादा अच्छे से समझ में आए, जैसे आप का पुण्य है, बेलेंस शीट अच्छी है लेकिन आपने पाप का कार्य कर दिया, उस पुण्य को भोगते समय, तब क्या होगा? पुण्य आपका डेबिट हो जाएगा, क्षीण होगा, समझ गए, पाप की क्रेडिट बढ़ जाएगी तो ये तुम्हारा नुकसान है।
पाप का उदय चल रहा है। अब पाप के उदय में आपने संयम साधना रखा, सात्विक भाव रखे, दया परोपकार करूणा के कार्य किए तो उससे उस घड़ी में पुण्य का बन्ध हो गया तो जो आप का पाप है वो पतला पड़ जाएगा, डेबिट हो जाएगा और पुण्य आपका बढ़ जाएगा। सारी चीजें हैं, आप अपने प्रति जागरूक हो, आपकी बैलेंस शीट आपके सामने होनी चाहिए और अगर बैलेंस शीट को आपने ठीक कर दिया तो सब बातें हो सकती हैं।
शंका – क्या यह हम हर पल हर क्षण भी कर सकते हैं?
हर पल, बिल्कुल अभी जो आप लोग कर रहे हो ना, अपने बेनिफिट को स्ट्रांग कर रहे हो। एक बात बताता हूँ जब आपको लगे कि मेरा समय अशुभ है, दिनमान खराब दिख रहा है यानि अभी पाप सिर चढ़ करके बोल रहा है, पाप भारी है, ऐसे मौके में क्या करें? हम धर्म क्षेत्र में चले जायें, गुरुओं के समागम में चले जायें, अपने आप को यथासम्भव शुभ में रमा दें। जब हम शुभ में रमायेंगे तो दो सम्भावनायें घटेंगी, पहली, हमारा पाप क्षीण हो जाए और न हो तो भी पाप पतला हो जाए। मैं एक घटना बताता हूँ, मेरे सम्पर्क के एक सज्जन जो एक जमाने में बहुत संपन्न थे। संयोग पर, गलत पॉलिसी अपना लेने से उन्हें बड़ा लम्बा घाटा हुआ, लाखों रुपया दान करने वाला व्यक्ति ₹१०००० के लिए मोहताज हो गया। उस व्यक्ति ने देखा कि अभी मेरा समय खराब है, काम करने की कोई पोजीशन थी ही नही। उन्होंने बहुत संयम से, शांति से अपना वक्त गुजारा। उनके नगर में ७ जिन मन्दिर थे। उन्होंने सातों मन्दिर के दर्शन करने के बाद ही मुँह में पानी डालने का संकल्प लिया। पैदल जाते सात मन्दिर, लगभग-लगभग ५ किलोमीटर की एरिया में ४.५०- ५ किलोमीटर आना-जाना होता। कस्बे में थे लेकिन सातों मन्दिर का वह व्यक्ति दर्शन करें और ४७ टेंपरेचर में, दिन के ११:०० बजे के बाद मुँह में पानी डाले। एक मन्दिर में रोज बदल-बदल कर के पूजन करना, भाव भक्ति के साथ और सातों मन्दिर का दर्शन करना। आप सुनकर के आश्चर्य करेंगे, ६ महीना नहीं बीता, नासिक में उनकी एक प्रोपर्टी थी जो बहुत दिनों से लिटिगेशन में पड़ी हुई थी। सामने वाले से मैसेज आ गया, चलाकर कि वह लिटिगेशन खत्म हो गया, एक बड़ी डील हो गई, उनके पास अच्छी मोटी रकम आ गई। दूसरी तरफ भोपाल में एक पार्टी थी, जो उनको पता ही नहीं था जो किसी जमाने में उनके पिताजी ने खरीदी थी, पॉश एरिया में, कीमती जगह थी। उनको किसी दलाल का मैसेज आया कि यह प्लाट अगर बेचते हो तो दे दो। अँधा क्या चाहे दो आंखें। उन्होंने उन दोनों को सलटाया और जितना खोया था उससे कहीं ज़्यादा पाया और आज पहले से ज़्यादा अच्छी स्थिति में है। यह क्या है? यह रिकवरी है। जब भी तुम्हें अपने जीवन का सन्तुलन बिगड़ता दिखे, इसी भाँति कार्य करो, ठीक होगा।
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