स्पष्टवादी व्यक्ति सही को सही, गलत को गलत कहता है, चापलूसी नहीं करता, जिससे वह समाज से कटता चला जाता है। स्पष्टवादी होना बेहतर है या व्यवहार कुशल होना?
अति स्पष्टवादी होना ठीक नहीं है। आदमी को व्यवहारकुशल होना चाहिए। हमारे यहाँ सत्य कहने की बात कही गई है पर सत्य के साथ-साथ एक बात और कही गई है -प्रिय सत्य बोलो।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम्। प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन:॥
सच बोले, प्रिय बोलें, अप्रिय सत्य न बोलें, प्रिय असत्य न बोलें- यह हमारा धर्म है।
चाटुकार बनना भी गलत है और अधिक स्पष्टवादी बनना भी गलत। बीच का रास्ता निकालें। जिस सत्य से किसी को तकलीफ हो वह न बोलें, जिससे किसी का अहित हो, ऐसा सच न बोलें। संभल करके बोलें। हमारे यहाँ कहा गया है कि कोई व्यक्ति अन्धा हो तो उसे अन्धा न कहा जाए, सूरदास कहा जाए, उसे अच्छा लगेगा।
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