धर्म का मार्ग कठिन है, पर हितकर है!

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शंका

धर्म पर चलने का रास्ता कुछ कठिन है लेकिन अन्त में विजय उसी की होती है ऐसा क्यों?

समाधान

दो रास्ते हैं- एक सुख का और दूसरा हित का। सुख का रास्ता लुभावना है पर टिकाऊ नहीं, हित का रास्ता कठिन है पर टिकाऊ है। जैसे कोई व्यक्ति बीमार हो, उसका पेट खराब हो और उसे मिठाई खाने की इच्छा हो तो मिठाई खाने से उसको सुख तो मिलेगा लेकिन बाद में डिसेंट्री (dysentery) हो जाएगी। मिठाई खाई, सुख मिला परिणाम उल्टा निकाला। यदि उस व्यक्ति से यह कहा जाए कि “भाई! इस समय तुम्हें मिठाई नहीं उपवास रखना चाहिए। कुछ भी खाओगे-पियोगे नहीं तो तुम्हारा पेट जल्दी ठीक हो जाएगा और तुम इस पीड़ा से भी मुक्त हो जाओगे।”- यह हित का रास्ता है। इसमें थोड़ी देर के लिए तकलीफ है परन्तु दीर्घकालिक आनन्द है, अनुभूति है। 

धर्म का मार्ग हित का मार्ग है और भोग का मार्ग तात्कालिक सुख का मार्ग है। लोग लुभावने सुख की ओर ज़्यादा आकर्षित होते हैं, चिरस्थायी आनन्द देने वाले धर्म की तरफ उनका झुकाव कम होता है। धर्म की तरफ झुकाव तब होता है जब उनके मन में वितृष्णा का भाव आता है, उकताहट, वैराग्य, उदासीनता का भाव आता है। जब तक मनुष्य के मन में भोगों से भी विमुखता नहीं होती, सच्चे अर्थों में धर्म से अनुराग नहीं जगता और धर्म का जब तक अनुराग नहीं बढ़ता तब तक जीवन का आनन्द नहीं आता।

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