मेरे मन में बहुत पीड़ा है, ग्रामीण क्षेत्रों में तीन प्रकार के मन्दिर हैं। कुछ मन्दिर व उनके श्रावकों की आर्थिक स्थिति अच्छी है, तो वे जीर्णोद्धार वगैरह कराते रहते हैं। दूसरे मन्दिर ऐसे हैं जिनकी स्थिति खराब हो रही है और वहाँ के श्रावक जीर्णोद्धार कराने में सक्षम ही नहीं हैं। तीसरी स्थिति में मन्दिरों की हालत खराब है और कोई श्रावक भी वहाँ नहीं है और आसपास के लोग कहते हैं कि “इन मन्दिरों को यहाँ से shift (स्थानांतरित) कर दीजिए।” हम लोगों से यह आग्रह करते हैं, बड़े-बड़े तीर्थों से भी, बड़े-बड़े मन्दिरों से भी और श्रेष्ठियों को भी कि इन मन्दिरों को गोद लेकर के जीर्णोद्धार कराएँ। लेकिन वो कहते हैं कि मन्दिरों को यहाँ से shift (स्थानांतरित) कर दीजिए। स्थानांतरित करने पर तो हमारी संस्कृति ही खत्म हो जाएगी। आपके आशीर्वाद से अगर अन्य लोगों की इसमें जागृति आए तो उचित होगा।
मन्दिरों का रखरखाव होना चाहिए, मन्दिरों का जीर्णोद्धार होना चाहिए और हमारा नाम मन्दिर बनाने वालों में होना चाहिए उजाड़ने वालों में नहीं। कई जगह ऐसी स्थिति होती है कि मन्दिर में पूजा-अर्चना करने वाले कोई नहीं हैं। आजकल गाँव खाली हो गए हैं, अब तो शहर के संकीर्ण इलाके भी खाली होते जा रहे हैं। अब जयपुर के विशाल-विशाल मन्दिरों के दर्शन करने के लिए भी मुझे 8-10 से ज़्यादा लोग नहीं दिखते हैं। पता लगा सब लोग यहाँ से पॉश एरिया में चले गए, भगवान को भगवान भरोसे छोड़ते जा रहे हैं। जहाँ पूजा-अर्चना की व्यवस्था नहीं होती वहाँ बड़ी एक विडम्बना जैसी हो जाती है कि भगवान तो विराजमान हैं पर ढंग से पूजा-अर्चना भी नहीं हो पा रही। पहल यह होनी चाहिए कि जहाँ भी हमारे मन्दिर या धर्मायतन हैं वहाँ पर लोगों को बसाया जाए और उनकी पूजा-अर्चना को सुनिश्चित किया जाये।
मध्यप्रदेश में एक जगह तीन शिखर वाला विशाल मन्दिर है और वहाँ पूजा-अर्चा करने के लिए एक भी घर नहीं, सब बहुत चिंतित रहते थे, सोचते थे “मन्दिर कहाँ शिफ्ट करें?” उस मन्दिर की कुछ सम्पत्ति थी, मैंने कहा “मन्दिर शिफ्ट करने की क्या जरूरत है? इतनी अच्छी स्थिति के मन्दिर हैं, वहाँ स्कूल खोल दो, शिक्षकों को नियुक्त कर दो और 1-2 जैन परिवार को बसा दो, उनकी दुकान खुलवा दो।” गाँव थोड़ा ठीक था, उन्होंने मन्दिर की जगह पर स्कूल खोला, जनसेवा का कार्य हो गया, 1-2 दुकानें खुलवा दीं। चार-पाँच परिवार बस गए, आज भगवान की पूजा-अर्चना हो रही है। जगह व परिस्थिति के अनुसार यदि इस तरीके से काम किया जाए तो दोहरा लाभ हो सकता है।
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