एक व्यक्ति है जिसका नाम मानव है, वह मनसावाचा कर्मणा सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय की बात करता है या वह ऐसा करने के भाव रखता है, किन्तु संबन्धित व्यक्ति या अन्य जनों से उसको ऐसी प्रतिक्रिया नहीं मिलती है। यह उसका पूर्व जन्म का कर्म फल है या नई सम्पति बना रहा है अगले जन्म के लिए, परन्तु वर्तमान में वह विक्षोभ से भर जाता है और वह कुंद हो जाता है, तो ऐसा क्यों?
देखिए, हम कोई अच्छा कार्य करें यह हमारा पुरुषार्थ है और दुनिया उसे अच्छा माने यह हमारा भाग्य है। हमारे हाथ में हमारा पुरुषार्थ है भाग्य नहीं। हम पुराने समय का जो भाग्य लेकर आए हैं उसी का प्रतिभाव आज हमें मिल रहा है। लेकिन आज जो हम पुरुषार्थ करेंगे वह हमारे भावी भाग्य का निर्माता बन जाएगा। इसलिए ऐसी स्थिति में शोक न करें। कई बार ऐसा होता है कि अच्छा करने के बाद भी लोग उसे अच्छा नहीं समझते हैं। मैं तो कहता हूँ, “लोग मुझे अच्छा समझें”, इस ख्याल से अच्छा न करें; “हम अच्छा बनें”, इस भाव से अच्छा करें तो सब अच्छा होगा।
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