किसी वस्तु के त्याग को समाज में रहते हुए कैसे पालें?

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शंका

जब हम कभी किसी खाने-पीने की वस्तु का त्याग करते हैं और सामने वाला व्यक्ति उन्हीं त्यागी हुई चीजों को लेने का आग्रह करता है, तो हम मना कर देते हैं। ऐसा करने से कहीं हम पाप के भागीदारी तो नहीं बनते हैं?

समाधान

जब आप से कोई ऐसी वस्तु को खाने के लिए बोले जिसका आपका त्याग है, तो उस व्यक्ति से बहुत ही विनम्रतापूर्वक कहिए कि “हम आपके यहाँ खाने के लिए नहीं बल्कि हम आप से प्यार से दो बातें करने आए हैं। आप मेरे पीछे परेशान न हों। मुझे भूख नहीं है और न ही मुझे कुछ खाने की इच्छा है। हम अपना काम कर लेंगे और आप अपना काम करें।”

मेरे सम्पर्क में एक डॉक्टर त्रिपाठी हैं, वे जबलपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने मेरे प्रवचन छत पर बैठ कर सुने थे और उन्होंने और उनकी पत्नी, दोनों ने रात्रि भोजन का त्याग किया था। त्रिपाठी जी एम. डी. हैं और उनकी पत्नी gynaecologist(स्त्री रोग विशेषज्ञ)हैं। १९९७ में उन्होंने त्याग किया था। उस समय उनकी उम्र ४२ और ४४ थी। २००४ में जबलपुर में वे लोग मुझे मिले और उन्होंने मुझे याद दिलाया, कि “महाराज श्री! हम वो लोग है जिन्होंने आप से रात्रि भोजन का त्याग लिया था।” उन्होंने कहा कि “हम रात्रि में पानी भी नहीं पीते हैं।” मैंने पूछा “आपका नियम निभ गया?” “बहुत अच्छे से निभ गया, नियम तो हमें निभाना है।” मैंने पूछा “ क्या करते हो?” वह बोले “जब हमें कोई अपने कार्यक्रम में बुलाता है, तो हम उनके यहाँ पर निर्धारित समय से आधा घंटा पूर्व पहुँच जाते हैं और वहाँ पर जब देखते हैं कि अभी देरी है, तो लिफाफा हाथ में पकड़ा कर चले आते हैं और किसी को कोई परेशानी भी नहीं होती।” तो अपना धर्म इस तरह से पालो कि कोई दुविधा में न फंसे।

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