“प्राप्त को पर्याप्त” कब-कब मानें?

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शंका

“जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है”, ये हमे कब-कब implement (प्रयोग मे लाना) करना चाहिए? ज्ञान प्राप्त करने में या धन प्राप्त करने में ? पर्याप्त में से कम हो जाए तो क्या और प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए?

समाधान

“प्राप्त को पर्याप्त समझो”, मैंने वह किस संदर्भ में कहा उसे समझें- धन-पैसे के संबंध में, संतान के संबंध में, संपत्ति के संबंध में, सामग्री के संबंध में और सत्ता के संबंध में, इन चार बातों के संबंध में प्राप्त को पर्याप्त समझना। सत्ता ,संपत्ति ,सामग्री और संबंधी-इस संबंध में प्राप्त को पर्याप्त समझना। लेकिन ज्ञान को कभी पूरा मत समझना। अंतिम क्षण तक अपने आप को अधूरा समझना तभी जीवन के परम तत्व को प्राप्त कर सकोगे।

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