शंका
जब कोई व्यक्ति मृत्यु के निकट होता है, तो परिवार वाले उसे क्षुल्लिका या आर्यिका दीक्षा दिलाने की कोशिश करते हैं और वह ले नहीं सकते इसमें उन्हें पुण्य मिलेगा या नहीं?
समाधान
मरते-मरते प्राण अटकते हों और उन्हें दीक्षा दे दिलाई जाए, यह दीक्षा का मखौल (उपहास) है। दीक्षा तब ही देनी चाहिए जब कम से कम दीक्षा के बाद व्यक्ति एक बार चर्या करने में समर्थ हो, चाहे वह चर्या करे या न करे लेकिन उसकी शरीर की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि वह एक बार चर्या करने में समर्थ हो, वही दीक्षा का पात्र है।
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