पृथ्वी पर हर चित्रकार अपनी कृति बनाकर उस पर अपना नाम लिखता है परन्तु जब एक माँ अपनी सन्तान को जन्म देती है तो वह उस सन्तान को पिता का नाम देती है, ऐसा क्यों?
यह बात सही है कि सन्तान के जन्म में माँ की भूमिका मुख्य होती है। परंतु ये भारत की परम्परा है, इसमें पिता से पहचान होती है क्योंकि हमारे यहाँ की जो समाज व्यवस्था रही है वह पितृ सत्तात्मक रही है। इसलिए पिता के आधार पर सन्तान का नाम है।
यह बात सत्य है कि माँ सन्तान को जन्म देती है पर पिता के बिना नहीं। इसलिए माता-पिता दोनों का ही मुख्य किरदार होता है। पिता बीज बोता है और माँ उसका रक्षण करती है। इसलिए भूमिका दोनों की है।
माँ के नाम की पहचान न देकर पिता का नाम इसलिए दिया जाता है क्योंकि हमारे यहाँ पितृ सत्तात्मक समाज व्यवस्था है। लेकिन हमारी परम्परा के दूसरे रूप को देखो! यद्यपि पितृ सत्तात्मक व्यवस्था के तहत पिता का नाम पहले होता है, लेकिन लोक में जब कभी भी बात आती है, तो ‘माँ-बाप’, ‘माता-पिता’ कहते हैं, ‘पिता-माता’ नहीं कहते, ‘बाप-माँ’ नहीं कहते।
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