“हमारी चिता जले उससे पहले अपनी चेतना को जगा लें”, इसका क्या अर्थ है?
चिता के जलने से पहले अपनी चेतना को जगाओ, यानि मरने से पहले सम्भल जाओ, अपनी चेतना को जगाओ।
अभी तुम तो जगे हुए हो लेकिन तुम्हारी चेतना सो रही है। सुप्त चेतना का मतलब जिसे अपनी सुध बुध न हो। “मैं कौन हूँ और मेरा क्या है?” जिसको इसका पता है समझ लेना उसकी चेतना जागी हुई है। जिसकी चेतना जाग जाती है, वह फालतू की चीजों में ‘मेरा-मेरा’ नहीं करता। वो जानता है कि मैं कौन हूँ, मेरा क्या है, केवल उसका ही सत्कार करता है, उसका ही संरक्षण करता है, उसे जानो। मनुष्य सारी जिंदगी जिनके पीछे भागता है, उसमें से कुछ भी उसका नहीं है। तुम्हारा धन, तुम्हारी संपत्ति, तुम्हारा परिवार, तुम्हारा घर; क्या तुम्हारा है? तुम्हारा यह शरीर; क्या तुम्हारा है?
मैं कौन हूँ? मैं आत्मा हूँ, पर लगे अनात्मा में हो!
एक दिन मर जाओगे, चिता में राख में परिवर्तित हो जाओगे, तो तुम्हारा क्या होगा? मैं कौन हूँ, मेरा क्या है; यह जिसने जान लिया, समझ लो उसकी चेतना जाग गयी और जो यह नहीं जाना उसकी चेतना मोह निद्रा में डूबी हुई है।
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