हम शादी में फिजूल खर्चों से तो बचते हैं और कंदमूल बनाते हैं, अपने ही लोगों के बीच पहल करने से क्यों डरते हैं? यह शुरुआत कैसे हो, कृपया मार्गदर्शन करें।
13 अप्रैल 2014 को “टाइम्स ऑफ इंडिया” में एक बहुत अच्छी रिपोर्ट प्रकाशित हुई; जो पूरे समाज को एक बहुत बड़ा संदेश देती है कि यदि इच्छाशक्ति हो तो बहुत बड़ा परिवर्तन खड़ा किया जा सकता है।
उस रिपोर्ट में एक बेंगलुरु की और एक पुणे की, ऐसी दो हाई प्रोफाइल शादी का वर्णन किया गया। फाइव स्टार होटलों में की गयी वो शादियाँ पूर्णतया वीगन (Vegan) थी। उस वीगन शादी को लोगों ने बहुत सराहा। सारी मिठाईयाँ सोया मिल्क की, दही सोया मिल्क का, अन्य पनीर वगैरह सब सोया मिल्क का बनाया; वहाँ दूध का या घी का कोई इस्तेमाल नहीं किया। इसमें एक टिप्पणी की गई, अगर व्यक्ति के अन्दर इच्छाशक्ति हो तो चाहे जैसा वह कर सकता है। भारत जैसे देश में जहाँ सब तरह के नॉनवेज और अन्य प्रकार के पदार्थों का लोक सेवन करते हैं, वहाँ वीगन (दूध रहित) ; यद्यपि दूध माँसाहार नहीं है, लेकिन फिर भी दूध और दूध के उत्पाद रहित भोज सामग्री देना और लोगों के द्वारा सराहा जाना, एक बहुत ही अच्छा उदाहरण है।
मैं तो कहता हूँ, आज कल पर्याप्त मात्रा में दूध की उपलब्धता होती भी नहीं। इसलिए बड़े समारोह में इस तरह का अनुकरण करना ज़्यादा अच्छा है। आजकल तो मिलावटी दूध देश में ज़्यादा बिक रहा है; उससे तो अच्छा है जो हमारे लिए स्वास्थ्यप्रद भी हो और धर्म सम्मत भी हो। इसी तरह यदि व्यक्ति अपने अन्दर की इच्छाशक्ति को जगाए, तो उन सब प्रकार के वर्ज्य पदार्थों से बचा कर के भी आप अपना काम कर सकते हैं।
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