हम प्रतियोगिताओं में माचिस की तीली से मन्दिर बना लेते हैं तो क्या हमें उससे पुण्य मिलता है और बिगाड़ने से क्या पाप लगता है?
माचिस की तीली से प्रतियोगिता में मन्दिर बनाने वाले को पुरस्कार अवश्य मिलता है, पुण्य मिले या न मिले। आपने वह मन्दिर किस लिए बनाया है? भगवान को विराजमान करने के लिए या पुरस्कार पाने के लिए? आपने बनाया तो पुरस्कार पाने के लिए है और खोज रहे हैं पुण्य, तो कहाँ से मिलेगा!
आपने दिल्ली की टिकट कटायी है और जाना चाहो मुंबई, तो क्या जा पाओगे? नहीं! आपने उस प्रतियोगिता में अपनी भागीदारी पुरस्कार पाने के लिए की थी न कि पुण्य कमाने के लिए! तो जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आपने भागीदारी की, उस उद्देश्य का आपको लाभ मिलेगा बशर्ते आप वैसा प्रयास करें। मैं इन प्रतियोगिताओं को पुण्य-पाप से नहीं जोड़ता बल्कि मेरा तो मानना यह है कि कभी-कभी ऐसी प्रतियोगिताओं में लोगों को सन्क्लेश भी बहुत हो जाता है। यदि कोई निर्णय पक्षपातपूर्ण हुआ अथवा किसी के अनुकूल नहीं हुआ तो लोग इसे पचा नहीं पाते और सन्क्लेश कर डालते हैं। ऐसे सन्क्लेशकारी निमित्तों से यथासम्भव बचना चाहिए।
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