आस्था, विश्वास और अन्धविश्वास किस तरह से भिन्न है? आज के परिवेश में देखा गया है कि अन्धविश्वास की तरफ व्यक्ति ज़्यादा आकर्षित होता है।
आस्था और विश्वास तो सामान्यत: एक दूसरे के पर्यायवाची हैं लेकिन फिर भी आस्था और विश्वास में सूक्ष्म अन्तर है। आस्था मतलब हमारे अन्दर किसी व्यक्ति या वस्तु के प्रति एक झुकाव होना और विश्वास उसका थोड़ा बढ़ा हुआ रूप है।
उसके ऊपर भरोसा हो जाता है जिन पर हमारा विश्वास है, ऐसा भरोसा कि इनके माध्यम से हमारा काम होगा। भगवान के प्रति मेरी आस्था है। सामान्य आस्था के कारण हम भगवान के चरणों में शीश झुकाते हैं, भगवान की पूजा करते हैं, ये आस्था है। लेकिन “भगवान की शरण में जाने वाले का निश्चित उद्धार होगा”, यह भगवान पर विश्वास है।
अन्धविश्वास दो तरीके का होता है- एक किसी पर भी भरोसा कर लेना, यह अन्धविश्वास है और अपने विश्वास के बदौलत कोई विशेष चीज चाहना -दोनों अन्धविश्वास की श्रेणी में आते हैं। भगवान के पास जाकर मन्नत- मनौतियाँ माँगना भी अन्धविश्वास है और अन्धविश्वास से ग्रसित होकर के किसी के आगे अपना सिर झुकाना भी अन्धविश्वास है।
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