मन में इच्छा हो कि संयम के मार्ग पर बढ़ें या मोक्ष मार्ग पर बढ़ें पर उसमें घर वालों का विरोध हो तो कैसे पुरुषार्थ करना चाहिए?
दृढ़ता रखो आज नहीं कल, घर वाले साथ देंगे। हमारे संघ में एक आर्यिका हैं दुर्लभमति, कभी उनके दर्शन करो। वे जब इस मार्ग में निकलना चाहती थीं तो उनके घर के सब के सब लोग विरुद्ध थे। दुर्ग का पाटनी परिवार था, सारे के सारे लोग अगेंस्ट (विरुद्ध) थे लेकिन वे बड़ी दृढ़ वैरागी थीं। उनकी चर्या में बड़ी स्थिरता थी, उन्होंने किसी बात का प्रतिवाद नहीं किया और अपनी चर्या में दृढ़ रहीं। लोगों की बात का विनम्र, किन्तु दृढ़ शब्दों में उनका प्रतिवाद किया। आपको सुनकर बड़ा अच्छा लगेगा कि चार साल बाद घर के लोग उनको आचार्य श्री के चरणों में लाकर छोड़ गए कि “महाराज जी ये आपके लायक हैं, हमारे काम की नहीं है।” जब आचार्य श्री जी ने जब उनको दीक्षा दी तो उनका नाम रखा दुर्लभमति।
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