क्या आप आगम में बदलाव करके मुनियों के विहार को रोक नहीं सकते?
हमारा विहार नहीं हो रहा है, हमारा भ्रमण चल रहा है। यही प्रार्थना सब जगह के लोग करते हैं। यहाँ से पहले झोटवाड़ा वालों ने भी की थी। तुमने गाकर की, उन्होंने बजाकर की थी। यदि यह प्रार्थना हमने उनकी सुन ली होती तो आज यहाँ यह ठाठ नहीं दिखता। सूरज के लिए कहीं एक जगह रुकना मुमकिन नहीं होता। इसलिए ठीक है मन आप लोगों का भरा नहीं है और भरेगा भी नहीं। मैं तो जब निकला जयपुर में और इधर का वातावरण देख रहा हूँँ तो मुझे लगा हमने गलती कर दी। क्या गलती की? हमको यहाँ आना नहीं था, सीधा निकल जाना था और आना था तो समय निकालकर आना था। बहुत समाज है। यहाँ के एक-एक मन्दिर में अगर हम 1-1 माह भी दे तो कम हो। और अगर उतना देखें तो कई चातुर्मास निकल जाएँगे। हमें ऐसा लगता है कम से कम पूरे जयपुर में 50 बड़े सेंटर हैं, जिनमें कटौती करके एक-एक सप्ताह भी दे तो साल के 52 सप्ताह तो जयपुर में आराम से बीत सकते हैं। भावना भाइये। इसलिए हमारे गुरुदेव ने एक बात कही थी एक बार। आप लोगों के सहारे के लिए मैं बता देता हूँँ। उनसे किसी ने पूछा कि आप मध्यप्रदेश में ही क्यों रहते हो? सारे देश में आपको भ्रमण करना चाहिए। तो उन्होंने अपने बचपन की घटना सुनाते हुए कहा कि गर्मी के दिनों में कुल्फी बेचने वाले आते थे और चौराहे पर बैठकर के अपनी घंटी बजाते, ठेला लगाते। चौराहे पर घंटी बजाई और आस-पड़ोस के सब लोग आएँ वहीं से कुल्फियाँ खरीद-खरीद के चले जाएँ। क्योंकि वह अकेला कुल्फी बेचने वाला पूरे शहर में कितना घूमे? तो उन्होंने कहा मैं तो अपनी दुकान बीच बाजार में लगा लेता हूँँ और मेरी कुल्फियाँ बिक रही है। और हम भी आप लोगों से कहना चाहते हैं कि भट्टारक की नसिया में हम लोगों की कुल्फियाँ भी खूब बिकी है। तो आप यह भाव रखो कि यह कुल्फी का ठेला हमारे मोहल्ले में आए, लेकिन न आ पाए तो जहाँ आए वहाँ जाकर कुल्फी का स्वाद लेना मत भूलें।
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