दृष्टिहीन, विकलांग जैनों के विवाह की समस्या का क्या निदान हो?

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शंका

सकल दिगम्बर जैन समाज में दृष्टिहीन, अस्थि बाधित, मूक बधिर, विकलांग आदि की एक ज्वलंत समस्या यह है कि समाज में इनके विवाह की बहुत समस्या आती है। जब तक माता-पिता जीवित होते तब तक तो कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन यह एक कटु सत्य है कि भाई का भाई नहीं होता है। हमारे जैसे अन्धे लोगों के लिए भी माता पिता चाहते हैं कि समाज की ही बेटी मिले, लेकिन समाज वाले कहते हैं “अच्छे अच्छे भी घूम रहे हैं। ऐसी स्थिति में समाज का क्या दायित्व और फर्ज होना चाहिए?

समाधान

जहाँ तक समाज की बात है, लोग अपनी बेटी देना चाहते हैं तो सब कुछ देखते हैं और देख कर के ही बेटी देते हैं। लेकिन हमारे यहाँ तो एक बहुत अच्छा उदाहरण जो समाज के बीच में रहा वह है रविंद्र जैन। उनका विवाह जैन परिवार में हुआ और उन्हें आँख वाली एक स्त्री मिली। उनका नाम है दिव्या जैन है। आपके यहाँ अजीत जैन है, वह नेत्रहीन हैं लेकिन उनकी धर्मपत्नी का नाम है शांति देवी और बड़ी सेवा करती हैं। इसलिए हताश मत होइए। जब नियोग होता है, तभी यह सारे काम होते हैं।

लेकिन मैं जो इस तरीके से अपनी शारीरिक अंगों की क्षति को प्राप्त है, उन्हें इस बात को लेकर हीन भावना लाने की जगह अपने हृदय में वैराग्य के भाव उजागर करना चाहिए। इस विवाह में क्या सार है? योग होना होगा तो होगा, पर जब दृष्टि नहीं है, तो अन्तर्दृष्टि को जगाओ। अगर संयम के रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सकते तो कम से कम ब्रह्मचर्य  की साधना तो कर सकते हो। यह भी एक जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि होगी और यही सच्चे अर्थों में मनुष्य जीवन का सार है। 

रहा सवाल जीवन के निर्वाह के लिए तो मैं जरूर कहता हूँ कि ऐसे बच्चे जो इस तरह संयम साधना के मार्ग पर आगे चलकर अपने जीवन को आगे बढ़ाना चाहते हैं, उनके लिए समाज में ऐसा संस्थान खुलना चाहिए जहाँ रहकर वह अपने सम्पूर्ण जीवन का निर्वाह कर सकें।

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