कोई मंदिर की शुद्धि भंग करे तो उसे कैसे रोकें?

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शंका

मैंने देखा कि सुबह भगवान जी के प्रक्षालन के समय एक सज्जन पेंट-शर्ट में ही सारी प्रतिमाओं को छूते हुए चले जा रहे थे। मैंने जब उनको देखा और रोका तो वो लड़ने लगे और बोले कि “ मैं पच्चास साल से यहाँ के ऐसे ही दर्शन कर रहा हूँ।” मुझे ये समझ नहीं आया कि मैं उनको किस तरीके से रोकूँ? वो देखना भी मेरे लिए पाप था। मुझे ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए?

समाधान

तुम्हें तो कुछ नहीं करना चाहिए, ये जिम्मेदारी यहाँ की प्रबन्धकारिणी समिति की है। एक कोई सख्त व्यवस्था बनाइए। ये ऐसी बात नहीं है जिसे ठीक न किया जा सके। ये जो भी समस्या है, ये बड़ी गम्भीर समस्या है।

किसी भी क्षेत्र की ऋद्धि-सिद्धि तभी तक कायम होती है जब तक वहाँ की पवित्रता बनी रहती है। मन्त्र साधना, तन्त्र साधना में सबसे ज़्यादा महत्त्व उस क्षेत्र की शुद्धि को दिया जाता है और यदि शुद्धि नहीं होगी, धीरे-धीरे शुद्धि खत्म हो जाएगी तो यहाँ का जो प्रभाव है वह दिनों-दिन क्षीण हो जाएगा। जिस प्रभाव से आकर्षित हो कर सारी दुनिया यहाँ आती है, उस प्रभाव को सुरक्षित रखना आप सबकी जिम्मेदारी है। कमेटी की जिम्मेदारी तो है ही, यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की भी जिम्मेदारी है क्योंकि ये गलती कमेटी नहीं करती, श्रद्धालु करते हैं और जिस तरह के श्रद्धालुओं की बात आपने की, इनको तो भगवान भी नहीं सुधार सकते। उन्हें खुद को सुधारना होगा।

सोचो कि तुम ऐसा कर के पुण्य कमा रहे हो या पाप। अगर तुम्हारे निमित्त से मन्दिर की पवित्रता बाधित होती है, तो तुम एक बहुत बड़ा पाप कर रहे हो, अप्रत्यक्ष रूप से। इसलिए अपना प्रमाद छोड़ना चाहिए और हमारे अन्दर की व्यवस्थाओं को ठीक करना चाहिए ताकि लोगों का धर्म-ध्यान निर्बाध रीति से संपन्न हो सके।

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