औरत ही औरत की दुश्मन क्यों होती है?
सुशीला जी पाटनी
आप के प्रश्न की अभिव्यक्ति यहाँ बैठी महिलाओं की प्रतिक्रिया से हो गई। “लोहा ही लोहा को काटता है।” एक प्रकृति सिद्ध सिद्धान्त है। खासकर स्त्रियों में परगुण असहिष्णुता ज़्यादा होती है। ईर्ष्या का भाव अधिक होता है। ईर्ष्या अपनों के बीच अधिक होती है और वही ईर्ष्या बैर, वैमनस्य, प्रतिशोध और हिंसा का रूप ले लेती है इसलिए इसे खत्म करना चाहते हो तो अपने हृदय की ईर्ष्या को निकाल फेंको। ईर्ष्या हमारे जीवन की बहुत बड़ी दुर्बलता है। हमारे जीवन के परम ऐश्वर्य को लील लेती है। इसको जीतने का तरीका है कि एक दूसरों के गुणों के प्रति अनुराग रखो, उनके गुणों के आप वाहक बनो, गुणों के गायक बनो, गुणों के ग्राहक बनो और गुणों के धारक बनो। गुणवाहक, गुणगायक, गुणधारक और गुणगायक बनो, एक दूसरे की प्रशंसा करो, उस से प्रेम बढ़ेगा । एक्चुअल में होता क्या है, जब कोई व्यक्ति आगे बढ़ता है और पीछे वाला उसे पचा नहीं पाता तब उसके भीतर की ईर्ष्या अनेक रूपों में अभिव्यक्त होने लगती है। इससे बचने का एक ही उपाय है अगर कोई बढ़ रहा है तो वो अपने बड़प्पन का परिचय दें और ऐसा लगे कि मेरी बढ़ोत्तरी से किसी को तकलीफ हो रही है तो अपना श्रेय उसको देना शुरू कर दें। उसका पेट भरेगा तुम्हारी प्रगति बढ़ेगी और जीवन में सामंजस्य बना रहेगा अन्यथा इस ईर्ष्या से अपने आप को बचा पाना बहुत मुश्किल है।
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