ब्रह्मचारी रोहित भैया जो अभी मुनि श्री संधानसागर महाराज के रूप में आचार्य श्री के साथ हैं, आपके साथ काफी समय तक रहे हैं। उनके साथ आप के कुछ अनछुए पहलुओं को हम जानना चाहते हैं।
रोहित मेरे पास 10 साल तक रहा और काफी अच्छे से जुड़ा रहा। मैंने उसे एक साधर्मी की तरह नहीं एक पुत्र की तरह स्नेह दिया, मैंने उसे संभाला। उसके मन में दीक्षा की बड़ी लगन थी और जब रामटेक में दीक्षा नहीं हुई तो वह एक प्रकार से डिप्रेशन की स्थिति में चला गया था। वह तो मुझे बिना बताए दिल्ली चला गया था किसी दूसरे संघ में दीक्षा लेने के लिए। जब मुझे मालूम पड़ा तब मैंने उसे वापस कलकत्ता बुलवाया और उस समय मैंने 15 दिन तक उसे जो मार्गदर्शन दिया तो उसका मन स्थिर हुआ तब वो रास्ते पर लगा। मैं सार में केवल इतना कहना चाहता हूँ मोक्षमार्ग में अगर किसी व्यक्ति को आगे बढ़ना है तो किसी एक को अपना आदर्श बना करके चलना चाहिए और उसके मार्गदर्शन को अपने जीवन में पत्थर की लकीर की तरह अंकित कर देना चाहिए, कभी भटकाव नहीं होगा। और यदि किसी को आदर्श नहीं बनाया तो भटके बिना नहीं रहोगे। रोहित ने मेरी बात नहीं मानी होती तो आज संधानसागर नहीं बना होता वह कुछ और हो गया होता। लेकिन उसने पूरी दृढ़ता के साथ उस बात को माना और स्वीकार किया,रास्ता प्रशस्त हुआ। और जितने सालों तक मेरे पास रहा अच्छी साधना की और धर्म की प्रभावना में भी उसने महती भूमिका निभाई।
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