आज का युवा ओपन माइंडेड है या नैरो माइंडेड?

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शंका

हम युवा अपने आप को बहुत open mentality (खुले विचारों वाले) का समझते हैं पर भेदभाव, partiality (पक्षपात), ऊँच-नीच और jealousy (जलन) में दूसरों से आगे रहते हैं। इनके side effects (दुष्प्रभावों) का भी हम ही सामना करते हैं। इन चीजों से हम कैसे बचें?

समाधान

युवा स्वयं को open mentality का महसूस करता है लेकिन कई जगह बहुत narrow minded (संकीर्ण मानसिकता का) हो जाता है। open mentality का महसूस करना और अपने mind को open करना-इन दोनों में बहुत अन्तर है। जब तक हम अपने आपको ठीक तरीके से नहीं समझेंगे हमारी मानसिकता ठीक नहीं होगी। हमने अपनी पहचान केवल बाहरी चमक तक सीमित कर ली हैं। हमें स्वयं को समझना होगा- “हकीकत में मैं कौन हूँ? अब मुझे क्या करना है? मेरे जीवन की प्राथमिकताएँ क्या हैं? मेरे अन्दर उत्पन्न होने वाली जो बुराइयाँ हैं, विकार हैं उनके शमन का उपाय क्या है?” जब तक इन सब बातों के विषय में खुद नहीं सोचेंगे, खुद नहीं समझेंगे तब तक हमारे जीवन में परिवर्तन नहीं आएगा। 

अगर युवा अपने आप को ओपन मेंटालिटी का महसूस करते हैं, तो बहुत अच्छी बात है। मैं चाहूँगा कि वे अपने आप को एकदम ओपन मेंटालिटी का बना लें; जो अन्दर क्षुद्रता है, संकीर्णता है, उसे दूर करें। मैं कई युवाओं को देखता हूँ, आज की ओपन मेंटालिटी का मतलब क्या हो गया है?- जो करना है खुलकर करो; शराब पीना है, खुलकर पियो; कोई गलत काम करना है, कोई संकोच मत करो – और ऐसे ओपन माइंड वाले बच्चों को जब कोई कहता है कि “भैया! मुनि महाराज आए हैं, धोती पहन के आहार दे लो।” तो कहते हैं  “हमको शर्म आती है।” “मन्दिर में भगवान का अभिषेक कर लो”, “हमको शर्म आती है।” “महाराज जी की सेवा-सुश्रूषा कर लो”, “हमको शर्म आती है।” किसी बड़े का आदर करने के लिए झुक कर के पाँव छूना पड़ जाए तो उनकी कमर में दर्द हो जाता है। कहाँ है  ओपन मेंटालिटी? पाप के लिए आप लोग ओपन माइंडेड होते हैं; और धर्म और परमार्थ के क्षेत्र में अपना दिमाग संकीर्ण कर लेते हैं। ऐसा करने से कभी अच्छे परिणाम नहीं आएँगे। हम मन को खोलें, खुले मन से विचार करेंगे परिणाम तभी अच्छे आयेंगे।

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