जैन धर्म का मूल वीतरागता है पर हमारा पूरा जीवन रागों के बीच गुजरता है, तो समन्वय बनाने के लिए अपनी मानसिकता को कैसे तैयार करें और अपने बच्चों को भी इसमें कैसे शिक्षा दे सकते हैं क्योंकि अब जीवन अपेक्षापूर्ण हो गया है।
जैन धर्म का मूल वीतरागता है और लोगों का जीवन राग से भरा है। सबसे अच्छा रास्ता अपने राग को मोड़ दो और वीतराग से राग कर लो। अभी तुम्हारा राग संसार से है, भोगों से है, विषयों से है, व्यक्ति से है, वस्तु से है, उस राग को डाइवर्ट करो। वो राग प्रभु से जुड़े, परमात्मा से जुड़े, गुरु से जुड़े, धर्म से जुड़े तो ये राग मुड़ेगा और यही राग तुम्हें आगे चलकर तुम्हारी चेतना का उदात्तीकरण करने में सहायक और वीतराग मार्ग को अंगीकार करने में सक्षम बनाएँगा। यह बात सदैव ध्यान रखना चाहिए राग से सीधे वीतराग होना सम्भव नहीं है, राग से प्रशस्त राग, धर्म अनुराग पहले लाओ, तब वीतराग बनोगे। सघन अन्धकार के छटने के तुरन्त बाद सूरज नहीं उगता बल्कि पहले लाली फूटती है। लाली फूटती है उसके बाद सूर्योदय होता है, तो धर्म का राग प्रातः काल की लाली की भाँति है जो वीतरागता के सूर्योदय को प्रकट करने वाली है, तो लालिमा उत्पन्न होनी चाहिए। अपने बच्चों के हृदय में यह बात बैठानी चाहिए, कर्म सिद्धान्त का बोध कराना चाहिए, संसार के संयोगों की नश्वरता का ज्ञान कराना चाहिए और भगवान को अपने जीवन का आदर्श बनाने की प्रेरणा देनी चाहिए। ये बात बच्चों के दिल दिमाग में बैठ जाएँ तो फिर बच्चे कभी भटकते नहीं है।
Leave a Reply