भाग्य, संयोग, कर्म और धर्म का जीवन में क्या आधार है?

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शंका

कोई घटना, कोई दुर्घटना, कोई परिणाम, कोई इंसीडेंट होता है, हमेशा चार चीजों का उल्लेख कहीं न कहीं, कभी-कभी आता रहता है- भाग्य, संयोग, कर्म और धर्म। यह चार चीज अलग-अलग तो ठीक है कभी अच्छी लगती है लेकिन जब चारों का एक साथ मिश्रण होता है, तो बड़ी गुत्थी सी लगती है। आज के व्यावहारिक जीवन में इनका क्या आधार है और कितनी सच्चाई है?

समाधान

ये गुत्थी नही, जीवन की गुत्थी को सुलझाने की कुंजी है। जीवन की जो भी गुत्थियाँ है इन्ही चार से सुलझती है। हमारे जीवन में जो कुछ भी है इन्हीं चार से संचालित है। आज तुम यहाँ आकर खड़े हुये हो प्रश्न करने के लिए, पता है इसमें ये चारों चीजें है। चारों चीजें हैं इसीलिए कि तुम्हारी बुद्धि जगी है, तुम्हारा भाग्य है तुम यहाँ आये। यहाँ आ गए पर तुम्हारे साथ संयोग अनुकूल था, सौर-सूतक नहीं लगा तो चले आए। यहाँ आने के बाद तुमने अपना नाम लिखाया यानि कर्म किया। अगर नाम नहीं लिखाया होता तो तुम्हें अवसर नहीं मिला होता और कर्म करने के बाद तुमने आकर के यहाँ जो प्रश्न पूछा वह मर्यादा के अनुकूल किया धर्म है। उत्तर मिल रहा है, उल्टा-पुल्टा पूछते तो डाँट भी खा सकते थे। ये चारों चीजें जुड़ती है तब जीवन की गाड़ी आगे बढ़ती है।

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