मन्दिर जाने के लिए दृढ़ संकल्पित कैसे होयें?
आपने जो बोला कि किसी भी कार्य में समय का अभाव नहीं होता, अभाव प्राथमिकता का होता है। जब मनुष्य अपनी प्राथमिकता में धर्म को सर्वोच्च रख दे, मन्दिर को सर्वोच्च पर रख दे, अपने कर्तव्यों के पालन को एकदम सर्वोच्च पर रख दे तो उसके पास उस काम के लिए automatic समय निकल जाएगा। अभी तुम दिल्ली से आए हो, मुझे मालूम है तुम्हारी व्यापारिक व्यस्तता कैसी है लेकिन यहाँ किसके बल पर आये हो? यह सोच लिया कि मुझे जाना है, तो आ गए। अरे प्राथमिकता में यह था कि मुझे अनन्त चतुर्दशी को महाराज का आशीर्वाद लेना है, महा अभिषेक करना है, तो आज हर व्यक्ति को अपनी प्राथमिकताएँ निश्चित करने की जरूरत है, खासकर उन युवाओं को और युवा उद्यमियों को जो व्यापार जगत में बहुत आगे प्रगति कर रहे हैं। उनसे मैं यह कहना चाहता हूँ कि व्यापार करो बहुत अच्छी बात है लेकिन एक बात ध्यान रखना जड़ हरी रहने पर पेड़ हरा रहता है, जड़ सूख जाए तो पेड़ को सूखने से कोई नहीं बचा सकता। तुम सब कुछ करो लेकिन जड़ों को कभी मत भूलो। यह हमारे धार्मिक कर्तव्य है, हमारे जीवन के मूल है और हमें आज के इन युवकों को धर्म को केवल पारंपरिक तरीके से समझाना पर्याप्त नहीं है, उन्हें हमें व्यावहारिक तरीके से बताना जरूरी है। यह चीज समझाने की आवश्यकता है कि तुम्हारा जितना जरूरी ऑफिस और कारोबार है, धर्म का आचरण भी उतना ही जरूरी है क्योंकि जीवन के उतार-चढ़ाव में ठहराव धर्म आचरण के बल पर ही सम्भव है और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। धर्म की सोच होगी तो तुम अपने उतार-चढ़ाव में ठहराव ला सकते हो, मन को समाधान दे सकते हो तो ठीक तरीके से समझाया जाए तो व्यक्ति के अन्दर धर्म के प्रति रुचि स्वभाविक रूप से बढ़ जाती है, आध्यात्मिक प्रेरणा चाहिए। हम लोग केवल परम्परागत तरीके से धर्म करने की बात करते हैं या धर्म के सम्बन्ध में प्रोत्साहित करते हैं तो लालच देकर प्रोत्साहित करते हैं कि तुम धर्म करोगे तो तुम्हारा दुःख दूर हो जाएगा, संकट दूर हो जाएगा, बिजनेस में ग्रोथ आ जाएगी और वह आदमी करता है, संयोग से बढ़ गया तो दीवाना हो जाता है और नहीं हुआ तो फिर पीछे हट जाता है। नही, उनको समझाना है कि धर्म हमारे जीवन की शैली है। एक ऐसी सन्तुलित जीवन जीने की पद्धति है धर्म जो हमें सुख में, दुःख में, संयोग में, वियोग में, हानि में, लाभ में, उतार और चढ़ाव में ठहराव मूल जीवन जीने की प्रेरणा देता है। यदि सही धर्म की व्याख्या की जाए तो सारे कार्य हो सकते हैं और मैं समझता हूँ युवाओं में निष्ठा की कमी नहीं है, उन्हें सही दिशा की जरूरत है। आज इसका ही परिणाम तो है कि तुम्हारे जैसा युवा सब काम छोड़कर के यहाँ आ जाता है। हमें उसी तरीके से समझाने की जरूरत है। सही दिशा दो, पारंपरिक तरीके से नहीं मौलिक तरीके से धर्म की उपयोगिता को समझाओ।
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