पुण्य और पुरुषार्थ हर जन्म में किस प्रकार काम करता है? क्या तीर्थंकर और चक्रवर्ती जैसे पुण्यशाली जीव को भी पुण्य फलित करने से पूर्व कुछ पुरुषार्थ करना पड़ता है या छह खंड का राज भी वह अपने आप पा जाता है। पुण्य के बल पर मनुष्य को अपने पूरे जीवन काल में क्या-क्या मिलता है?
प्रद्युमन जैन, ग्वालियर
पुरुषार्थ के साथ पुण्य का सहारा चाहिये। पुण्य की पृष्ठभूमि में पुरुषार्थ अपना सही काम करता है। जिनका पुण्य प्रबल होता है वह अल्प पुरुषार्थ से बड़ा फल पा लेते हैं और जिनका पुण्य क्षीण होता है वो प्रबल पुरुषार्थ से भी अल्प फल पाते हैं। तीर्थंकर जैसे महान आत्मायें महान पुण्य शाली हैं, उनका पुण्य इतना प्रबल होता है कि गर्भ में आने के ६ महीना पहले से ही रत्न बरसने लगते हैं यह उनकी पुण्य की पहचान है। उनका पुरुषार्थ अल्प होता है फिर भी सारा काम अपने आप चलता रहता है।
हम किसी बड़े धनपति के यहाँ देखें, मालिक को कुछ पता नहीं होता लेकिन उनके सारे कारिंदे (कर्मचारी) उनका सारा काम करते रहते हैं, वो तो मस्त रहते हैं, सारा काम अपने आप चल रहा है। स्वयं अपने आप को शामिल किए बिना भी लोग उनका काम करते हैं क्योंकि एक ऐसा सिस्टम बन जाता है, विकसित हो जाता है। तीर्थंकरों के साथ भी पुण्य उनको सब कुछ प्रदान करता है, कहते है “पुण्य फला अरिहंता” लेकिन ऐसा नहीं है कि वे पुरुषार्थ नहीं करते, तीर्थंकरों को भी पुरुषार्थ करना पड़ता है और इसी पुरुषार्थ के लिये उन्होंने विवाह किया, पाँच तीर्थंकरों को छोड़कर और तीन तीर्थंकरों ने चक्रवर्ती होने के बाद दिग्विजय की यात्रा के लिए अभियान किया, अपने आप सारे राजा-महाराजा समर्पित नहीं हुए। हाँ, पुण्य प्रबल था, निकले तो सब समर्पित हो गए पर चलना तो पड़ा।
तो तीर्थंकरों को भी पुण्य को फलाने के लिए कुछ न कुछ कर्म तो करना पड़ता है। केवल पुण्य के ऊपर भरोसा मत करो, कर्म के ऊपर भरोसा करो, आज का युग कर्मभूमि का युग है इसलिए कर्म करके ही खाओ। ककहरा पढ़ते हैं तो पहले क और बाद में ख यानि पहले कर्म करो बाद में खाओ।
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