मन्दिर के द्वार पर हाथी या शेर की ही प्रतिमाएँ क्यों दिखाई देती हैं?

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शंका

मन्दिर के द्वार पर या अन्दर केवल हाथी या शेर की ही प्रतिमाएँ दिखाई देती हैं, बाकी कोई और जानवर क्यों नहीं लगाते है?

रचित जैन, दिल्ली

समाधान

प्रायः हाथी और शेर को मन्दिरों के पास रखा जाता है। ऐसे अन्य जानवर भी हैं, जानवरों की पूरी की पूरी पट्टी चलती है, उसको थर कहा जाता है। लेकिन यह बिल्कुल सही है कि हाथी और शेर को मुख्य रुप से रखा जाता है। उसका एक कारण यह है कि गज एक माँगलिक प्रतीक होता है, इसलिए माँगलिक प्रतीक के रूप में हाथी को रखा जाता है। हम एक ऐसे स्थान पर जा रहे हैं, जहाँ हमारा मंगल होना है, तो उस माँगलिक प्रतीक के रुप में गज को लेते है। दूसरा कारण यह कि हाथी बड़ा विशाल प्राणी होता है, तो जैसे हाथी विशाल है, हम अपने जीवन को विराट रूप देने के लिए विराट भगवान के दरबार में जा रहे हैं, इसलिए भी वहाँ हाथी का अंकन किया जाता है। तीसरी बात, हाथी एक ऐसा प्राणी है, जिसके पास सूँड होती है और जिसके माध्यम से वह हर चीज को विचार करके ही स्वीकार करता है। बस हमें एक ऐसी सूँड चाहिये जो विवेक का प्रतीक है। हम ऐसे दरबार में जा रहे हैं, जहाँ हमें अच्छे बुरे का विवेक प्रकट होने वाला है, इसलिए दरवाजे पर हाथी रखे जाते हैं। हाथी के दाँत अन्दर के अलग, बाहर के अलग होते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य का बाहर का जीवन दिखाने का होता है और अन्दर का जीवन असली होता है। हम बाहरी जीवन से भीतरी जीवन को शुद्ध बनाने के लिए जा रहे हैं। बाहर से भीतर की ओर जाने के लिए जा रहे हैं। हाथी के बड़े-बड़े कान इस बात का प्रतीक हैं कि हाथी जैसे कान रखने वाले व्यक्ति भगवान की वाणी को सुन सकता है, उसे अपने जीवन में ला सकता है। हाथी का बड़ा सा पेट इस बात का प्रतीक है कि हाथी जैसा प्राणी ही, हाथी जैसा मनुष्य ही, भगवान की वाणी को अपने भीतर समा सकता है इसलिए हाथी रखा जाता है।

शेर वैसे तो क्रूर होता है पर वहाँ पुरुषार्थ और पराक्रम का प्रतीक होता है, उसके कुकृत्यों की अनदेखी करके उसके पुरुषार्थ और पराक्रम को अपने भीतर प्रकट करने के उद्देश्य से शेर जैसे जानवरों का अंकन किया जाता है। जब तक तुम अपने पुरुषार्थ रूप सिंह को जागृत नहीं करोगे, तब तक अपने भीतर के परमात्मा को प्रकट नहीं कर पाओगे। अपने भीतर के परमात्मा का दर्शन वही कर सकता है जो हाथी जैसा विवेकी तथा शेर जैसा पराक्रमी हो।

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