42वें भक्तामर श्लोक का अर्थ क्या है?

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शंका

भक्तामर स्तोत्र जो मांगतुंग आचार्य द्वारा रचित है उसका यह काव्य:-
वल्गत्तुरंग-गज-गर्जित-भीम-नाद-
माजौ बलं बलवतामपि भूपतीनाम्।
उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखा-पविद्धं,
त्वत्कीर्त्तनात्-तम इवाशु भिदा-मुपैति ॥
जिसमें आपने अपने प्रवचनों में यह बताया था कि इस काव्य में युद्ध का वर्णन किया गया है, जैसे कोई एक राजा दूसरे राजा को मार रहा हो तो उस स्थिति में अगर कोई भगवान का स्मरण कर लेता है, तो युद्ध समाप्त हो जाता है और सच्चाई की जीत हो जाती है। पर महाराज श्री युद्ध में तो हिंसा होती है, तो क्या मांगतुंग आचार्य श्री हिंसा की अनुमोदना कर रहे हैं?

रक्षता जैन

समाधान

नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यहाँ बाहर के युद्ध की नहीं भीतर के युद्ध की बात हो रही है।

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