भौतिक संसाधनों की बहुलता और पाश्चात्य संस्कृति, इंटरनेट (internet) और टीवी (TV) का माया जाल हम सबके ऊपर इतना हावी हो गया है कि हम अपने आप में कम, मीडिया (media) से ज़्यादा जुड़ते जा रहे हैं। पारिवारिक नामों से परोसे जाने वाले घर-फोड़ू सीरियलों में जो आज परोसा जा रहा है, क्या उन बातों का real life (वास्तविक जीवन) में अपनाना सम्भव है? यदि इन पर गौर न किया जाए तो ये चलचित्र हम सबके जीवन में आतंकी हमलों से भी ज़्यादा खतरनाक साबित हो सकते हैं। इन खतरनाक हमलों से अपने और अपने परिवार को कैसे सुरक्षित रखें?
आपने एक बहुत बड़ा ज्वलंत मुद्दा उठाया है। लोगों के मन में ‘क्या खाएँ, क्या न खाएँ’ -इसका तो फिर भी विचार होता है, पर ‘क्या देखें, क्या न देखें’- इसका विचार बहुत कम होता है। हमें चाहिए कि लोग इस पर भी विचार करें। ‘क्या देखें, क्या न देखें’ विचार होना चाहिए।
जिन serials (धारावाहिकों) की बात आप कर रहे हैं, ये बिल्कुल सही शब्द है, घर-फोड़ू सीरियल-आपने पूछा है, क्या रियल लाइफ में उन्हें अपनाया जा सकता है? जो लोग ऐसे सीरियल बनाते हैं, उनसे खुद ये सवाल करो कि वे क्या रियल लाइफ में ऐसा पसन्द करेंगे? क्या दिखता है, क्या दिखाया जाता है? “उसने उसके पति को भगा लिया, वो दूसरे की पत्नी के साथ भाग गया, उसने दूसरे के साथ शादी कर ली, उसने उसके साथ ऐसा कर लिया, उसने सास को ऐसा कर दिया, सास ने बहू को ऐसा कर दिया, उसने उसको पीट दिया, उसने उसको पीट दिया”-उसको तो पिटने का और पिटवाने का पैसा मिलता है, उसको भगाने और भागने का पैसा मिलता है, तुमको क्या मिलता है सिवाय कुसंस्कारों के? इसलिए विवेक रखना चाहिए।
ऐसे सीरियलों को देखने में ज़्यादा रुचि नहीं लेनी चाहिए। क्योंकि जिस तरह के दृश्य आप देखेंगे, आपके अन्दर के मनोभाव वैसे ही बनेंगे। ऐसे मनोभाव के कारण मनोविकृतियाँ दिनों दिन बढ़ती हैं, हमारे संस्कार दूषित होते हैं। यह हमारे अन्दर की संवेदना को प्रभावित करता है और आज इसके कारण घर परिवार बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं, टूट-फूट रहे हैं। इसलिए अपनी सोच को बदलिए। ऐसे इनको सबको अनर्थ दंड की संज्ञा दी गई है, ये व्यर्थ की चीजें हैं। इनसे अपने आपको बचाने का पूरा प्रयास करना चाहिए।
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