मुझे गुस्सा क्षणिक आता है, पर जब आता है, बहुत तेज आता है। यह किस कर्म के उदय से आता है और ये कैसे कम हो, समाधान करें?
गुस्सा खुद ही कर्म है पर यह कर्म के उदय से नहीं, तुम्हारे अविवेक के अतिरेक से आता है। अपना विवेक रखो। आपने कहा आपको गुस्सा आता है, क्षणिक आता है। दुकान पर बैठते हो? कभी ग्राहक आते हैं और अगर मूडपचाई करते हैं, तो गुस्सा आता है? नहीं आता है। क्यों? क्योंकि ग्राहक को कपड़े बेचना है। विचार करो जो ग्राहक जिसका चरित्र का कोई अता-पता नहीं, शराबी हो, कबाबी हो, व्यभिचारी हो उसकी दो बातें तुम झेल लेते हो और जिसको सात फेरे पाड़कर के ले आए, उसको क्यों नहीं झेलते हो। घर में तुम्हारी सुशील धर्मपत्नी, तुम्हारे बच्चे, जिनको तुमने जन्म दिया उनकी बात क्यों नहीं झेलते हो? आज से अपने मन में बात बैठा लो, जैसे मैं वहाँ अपने गुस्से पर नियंत्रण रखता हूँ, मुझे अपने जीवन व्यवहार में भी गुस्से पर नियन्त्रण होना चाहिए।
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