मुनि श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज पूजन

जिनका विरागमय ही जीवन

जिनका विरागमय ही जीवन, आगम प्रमाण की मूरत है
ये विद्यासिन्धु नहीं फिर भी, ये उन जैसी ही सूरत है।।
भावों की सेज बनाकर के, उस पर तुमको पधरायेंगें।
गुरुवर प्रमाणसागर जी की, हम पूजन आज रचायेंगें।।

ॐ ह्रः श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्र! अत्र अवतर संवोषट्
ॐ ह्रः श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्र! अत्र तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्
ॐ ह्रः श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्र! अत्र मम सन्निहतो भव भव वषट्

सलिल शीतल निर्मल लायके, कनक सुन्दर पात्र भरायके।
मुनि पदाम्बुज अग्र सुदीजिये, जन्म मृत्यु जरा हर लीजिये।।
प्रणत हों मुनिराज प्रमाण को, दरस ज्ञान चरित्र प्रधान को।
तरण तारण आप जहाज हो, परम पावन श्री ऋषिराज हो।।
ॐ ह्रः श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्राय … जलं नि० स्वाहा।

मलय चन्दन केशर गारके, सुरभि मिश्र सुगन्ध मिलायके।
चरण श्री मुनिराज चढ़ाइये, सकल पाप कलाप नशाइये।। प्रणत…
ॐ ह्र: श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्राय … चन्दनम् नि० स्वाहा।

धवल उज्जवल तन्दुल लाइये, रतन थाल भराय चढ़ाये।
चरण पूजन अक्षत से प्रभो, परम शाश्वत सौख्य मिले विभो। प्रणत…
ॐ ह्र: श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्राय … अक्षतान् नि० स्वाहा।

सुमन सौरभ सुन्दर लायके, चरण पूजन हो हरषायके।
मदन रोग प्रभो हर लीजिये, शिव सुखामृत हे मुनि दीजिये।। प्रणत…
ॐ ह्रः श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्राय … पुष्पं नि० स्वाहा।

सरस व्यंजन शुद्ध बनायके, कनक भाजन माँहि भरायके।
पद सरोज मुनीश चढ़ाइके, दुख अनेक क्षुधादि नाशाइके।। प्रणत…
ॐ ह्र: श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्राय … नैवेद्यं नि० स्वाहा।

रतन दीपक ले कर आरती, करहुँ केवलज्ञान सुभारती।
तिमिर मोह हरो मुनिनाथ जी, चरण पूजत नाय सुमाथ जी।। प्रणत…
ॐ ह्रः श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्राय … दीपं नि० स्वाहा।

सुरभि चन्दन धूप सु लेइये, चरण अग्र मुनीन्द्र सु खेइये।
सकल कर्म कलंक नशाइये, परम पावन सौख्य सु पाइये।। प्रणत…
ॐ ह्रः श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्राय … धूपम् नि० स्वाहा।

विविध श्रीफल आदिक लायके, करत पूजन हर्ष मनायके।
मुनि पदाम्बुज चित्त लगाइये, परम मोक्ष महाफल पाइये।। प्रणत…
ॐ ह्रः श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्राय … फलम् नि० स्वाहा।

जल फलादिक द्रव्य मिलायके, करत पूजन श्री गुण गायके।
चरण में मुनि अर्घ चढ़ायके, पद अनर्घ मिले निज आयके।। प्रणत…
ॐ ह्रः श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्राय … अर्घ्यम् नि० स्वाहा।

दोहा
श्री प्रमाण सागर नमूँ, गुरु गुण में धर प्रीत।
आगम के अनुकूल है, जीवन परम पुनीत।।

जयमाला
हे मुनिवर तेरे जीवन की, हम गायें गुण-गौरव गाथा।
अर्चन के सुमन समर्पित कर, हम झुका रहे अपना माथा।।
वह नगर हजारीबाग धन्य, जिस धरती पर अवतार लिया।
सन् सढ़सठ सत्ताइस जून, शुभ दिन में तुम तन धार लिया।।
वह अद्वितीय क्षण जीवन का, खुशियों के दीप जलाये थे।
पाकर के एक “नवीन” सूर्य, सब मन ही मन हर्षाये थे।
वे धन्य पिता श्री हैं सुरेन्द्र, जिनके तुम राजदुलारे थे।
श्रीमती सोहनी देवी के, नयनों के एक सितारे थे।।
ग्यारहवीं तक शिक्षा पाकर, अज्ञान तिमिर अति दूर भगा।
श्री गुरुवर विद्यासागर के, दर्शन से आत्म- प्रबोध जगा।।
जो भव-वर्धन दुख का कारण, तुमने कुभाव चकचूर किया।
ले ब्रह्मचर्य व्रत निज स्वभाव, आनन्द आत्म भरपूर किया।।
गृहवास राग की आग त्याग, तुमने विराग स्वीकार लिया।
लख भोग-रोग तज के कुयोग, पथ वीतराग साकार किया।।
द्वय सहस्त्र पैंतालिस की, वह चैत्र शुक्ल तेरस प्यारी।
आचार्य श्री विद्यासागर से, मुनि पद की दीक्षा धारी।।
निर्वस्त्र दिगम्बर मुद्रा को, लखकर प्रसन्न हो अन्तस्तल।
मुनिवर प्रमाणसागरजी की जय, जय से गूंज उठा भूतल।।
श्री सिद्ध क्षेत्र सोनागिरि की, वह धरा परम पावन पुनीत।
जिस पर आ तुमने योग धार, शीतादि परीषह रहे जीत।।
शुभ और अशुभ संयोगों में, प्रतिपल समता-रस पान करें।
द्वादश अनुप्रेक्षा का चिन्तन, निज आत्म-तत्त्व का ध्यान करें।।
जिनके मुख से आनन्द सुधा, रस के निर्झर झरते रहते।
वचनामृत जिनके सुनने को, भवि चातक जन आतुर रहते।।
हे गुण आगर ! तेरा स्वरूप, शब्दों में कैसे बांध सकूँ।
ये शब्द निरर्थक से लगते, कैसे गुण पूर्ण बखान सकूँ।।
तव चरण हृदय में मेरे हों, मम हृदय आपके चरणों में।
जब तक शिवपद न पा जाऊँ जीवन हो सत् आचरणों में।।
हे जिनवाणी के आराधक! सिद्धान्त-वारिधि तुम्हें नमन।
हे तपः पूत संयम साधक! गुरुवर “उदार” है तुम्हें नमन।।

दोहा
श्री प्रमाणसागर तुम्हें, बारम्बार प्रणाम।
श्रद्धा सुमन समर्पित कर, पाऊँ शिवसुख धाम।।

ॐ ह्रः 108 श्री प्रमाणसागर मुनीन्द्राय … अर्घ्यम् नि० स्वाहा।

पुष्पांजलि…