जब एक पक्षी जिंदा होता है, तो वह चींटी को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करता है। लेकिन उसी पक्षी के मरने के बाद चीटियाँ उसे अपना भोजन बना देती है। इसी प्रकार एक वृक्ष से हजारों माचिस की तीलियाँ तैयार की जा सकती है, लेकिन एक माचिस की तीली हजारों वृक्षों को बर्बाद करने के लिए पर्याप्त होती है। हो सकता है हम शक्तिशाली हों लेकिन वक़्त हमसे ज्यादा बलशाली है, तो हमें अपने आपको और हमारे एटीट्यूड को किस तरीके से ढालना चाहिए कि समय और परिस्थिति चाहें जैसी भी हों, वक़्त अच्छा हो या बुरा, हम अपनी मूल और वास्तविकता को न भूलें और अपने व्यहार में एकरूपता बनाए रखें?
वक्त सबका बदलता है और यदि हमारे पास सब कुछ अच्छा है, तो हम तालमेल बनाकर चलें, जब हमारे पास अच्छा है, तो हम अच्छा करना शुरू कर दें, बुरे वक़्त में वो काम आएगा। प्रायः व्यक्ति जब अच्छा संयोग पाते हैं, तो वे अभिमानी हो जाते हैं और उस अभिमान में सब कुछ भूल जाते हैं। उनके अन्दर अभिमान आता है, आसक्ति आती है और उनकी एक अलग दुनिया हो जाती है। लाइफ़स्टाइल भी बदल जाती है लेकिन जब समय बदलता है, तो उनकी स्थिति बड़ी भयानक हो जाती है। हमें प्रारम्भ से ही ऐसी स्थिति होनी चाहिए, ऐसी मानसिकता बना कर के चलनी चाहिए, जब हमारी स्थिति अनुकूल हो, तो उस अनुकूल स्थिति में भी हम अपने आपको शांत बनाकर रखें। हम इन पंक्तियों को हमेशा याद रखें:
“होकर सुख में मगन न फूलूँ, दुःख में कभी न घबराऊँ,
इष्ट वियोग अनिष्ट योग में सहनशीलता दिखलाऊँI “
अगर यह वृत्ति मनुष्य के अन्दर होगी, तो वो संपन्नता में बौरायेगा नहीं, विपन्नता में बौखलायेगा नहीं।
मेरे सम्पर्क में एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके पास तीन-तीन मर्सिडीज हैं, लेकिन वह व्यक्ति अपने बेटे को स्कूल छोड़ने के लिए पैदल जाता है, नॉन-एसी स्कूल में पढ़ाता है, नॉन-एसी बस से स्कूल भेजता है। किसी ने उससे पूछा कि “भाई! तुम अपने बेटे को ऐसे सामान्य गाड़ी में क्यों भेजते हो?” वो बोले, “मैं बड़ा गरीब था और मेरे पिताजी के पास कोई धन नहीं था। मैं तो ऐसे स्कूल में पढ़ा जहाँ बोरा घर से लेकर जाता था, बोरी बिछा करके स्कूल में बैठता था। मेरे पिताजी के पास धन नहीं था पर मेरे पास धन है। मैं सारे साधन अपने बच्चों को दे सकता हूँ, पर सच बताऊँ समय का कोई भरोसा नहीं। मेरे पिताजी के पास धन नहीं था, आज मेरे पास धन है। यह कोई जरूरी नहीं कल मेरे बेटे के पास भी धन हो। और अगर ऐसा दिन आ जाए कि मेरे बेटे के पास धन का अभाव हो, तो उसे परामुखापेक्षी न बनना पड़े। इसलिए आज से ही मैं उसे स्ट्रांग बनाने के लिए कार्य करता हूँI” यह नज़रिया जिस मनुष्य का हो जाए वो जीवन में कभी भ्रमित नहीं हो सकेगा। जीवन में कभी दुखी नहीं होगा।
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