शंका
यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो उसकी गति क्या होगी? और उसके आत्महत्या करने के भाव किन कर्मों के उदय से होते हैं?
समाधान
आत्महत्या एक बहुत बड़ा पाप है। आत्महत्या करना यानी किसी जीते जागते इंसान की हत्या करना। हत्या तो हत्या है, स्व की हो या पर की। हत्या यानि प्राणों का वियोग करना और प्राणों का वियोग महान हिंसा है। इसलिए आत्महत्या जैसा दुष्कृत्य तो कभी किसी को करना ही नहीं चाहिए। जो भी करते हैं, वे महान पाप के भागीदार बनते है। यह नरकायु का कारण होता है। आपने पूछा किस कर्म के उदय से है, तो तीव्र मोहनीय कर्म उत्कृष्ट संकलेश का परिणाम है, जो अनेक भवान्तरों में दुर्गति का पात्र बनाता है। इसलिए आत्महत्या करना तो बहुत दूर की बात, सोचना भी नहीं चहिये।
Leave a Reply