हम अपने मित्रों से, परिवारजनों से इतनी उम्मीदें रखतें है कि अगर हमारा कोई काम थोड़ी देर से हो तो हमें बहुत तेज गुस्सा आ जाता है। हम expectation (अपेक्षा) न रखें, उसका क्या उपाय हो सकता है? अगर कोई बच्चा इसी अपेक्षा के कारण अपने माँ-बाप से गलत व्यवहार कर देता है, तो क्या पाप लगता है?
हम एक्सपेक्टेशन न रखें, यह तो बहुत अच्छी बात, पर प्रैक्टिकल नहीं। आप घर परिवार में जिनके साथ रहते हैं, जिनके बीच आपका उठना-बैठना है, कुछ न कुछ अपेक्षा तो रहेगी। अभी आपने मुझसे सवाल किया तो कोई अपेक्षा रख करके किया। इसी एक्सपेक्टशंस से किया है कि ‘महाराज जी मुझे अच्छा कोई मार्ग सुझाएँगे।’ अब मैं भी आपके सवाल का उत्तर दे रहा हूँ, इस एक्सपेक्टेशन के साथ दे रहा हूँ कि ‘मेरे समझाने से आपका कंसेप्ट क्लियर होगा।’ अपेक्षा रखें। एक सीमा तक अपेक्षा रखने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन बुराई तब है, जब सामने वाले से हमारी अपेक्षा की पूर्ति न हो और हम अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगें, वही दुःख होता है। अपेक्षा बुराई नहीं है, अपेक्षा की पूर्ति न होने पर स्वयं को उपेक्षित महसूस करना, यह बुराई है। जब आप उपेक्षित महसूस करेंगे तो रिएक्शन होंगे, क्रोध आएगा, लोभ आएगा, मोह आएगा, झुंझलाहट होगी, गुस्सा आएगा, पता नहीं आप क्या-क्या करेंगे? यह स्वाभाविक है। इसलिए क्या करें, जहाँ तक बने अपेक्षाएँ सीमित रखो और अपेक्षाओं की पूर्ति न हो तो अपने आपको उपेक्षित महसूस न करो।
सामने वालों की अपेक्षा की यथासम्भव पूर्ति करने की कोशिश करो और यदि कदाचित किसी की अपेक्षा की पूर्ति न कर पाएँ तो भी कोई चिन्ता की बात नहीं। उसमें उपेक्षा मत करो, तिरस्कार मत करो, ठुकराओ मत। यदि यह बातें आप सूत्र में आत्मसात कर लो तो सफल हो जाएँगे। फिर बड़े और छोटे की अपेक्षा और उपेक्षा भी अपने आप शान्त हो जाएगी।
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