ब्रह्मचर्य के अर्थ :
*ब्रह्म का अर्थ होता है -आत्मा। आत्मा की उपलब्धि के लिए किया जाने वाला आचरण ब्रह्मचर्य कहलाता है। मतलब, जो अपनी आत्मा के जितना नजदीक है वह उतना बड़ा ‘ब्रह्मचारी’ है और जो आत्मा से जितना अधिक दूर है वह उतना बड़ा ‘भ्रमचारी’ है।
*ब्रह्मचर्य एक बहुत बड़ी साधना है क्योंकि इसका स्व-प्रेरणा से पालन किया जाता है, किसी बाहरी दबाव से नहीं।
*ब्रह्मचर्य बहुत उच्च आध्यात्मिक साधना है और ब्रह्मचर्य का सम्बन्ध केवल यौन सदाचार या यौन-संयम तक सीमित नहीं है; अपितु ब्रह्मचर्य तो विशुद्ध आध्यात्मिक दृष्टि से सम्पन्न होकर जीना है।
*केवल स्त्री-पुरुष का एक दूसरे से दूर हट जाना ही ब्रह्मचर्य नहीं है बल्कि देह-दृष्टि से ऊपर उठने का नाम ब्रह्मचर्य है।
*ब्रह्मचर्य का मतलब है आँखों में पवित्रता।
उत्तम ब्रह्मचर्य कैसे अपनाएं?
उम्र के साथ अपने आप को रोकना, अपने आप को टोकना और अपने आप को थामना होगा। तन काम ना करने पर भी मन में इच्छाओं का जाग्रत होना विनाश का कारण है। जब इन इच्छाओं से मुक्त होंगे तब ही उत्तम ब्रह्मचर्य का पालन होगा और हमारा जीवन धन्य होगा।
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