मानसिक अशांति क्या है?
उपभोक्तावाद के इस युग में अनेक प्रकार की कृत्रिमताऐं हमारे मनोभाव, सोच, और व्यवहार को प्रभावित करती हैं। कुछ हमें हरपल अपने भविष्य के बारे में सोचने को विवश करती हैं। सभी सुख सुविधाओं, ऐश, आराम तथा शांति का साधन होने पर भी चिंता, बेचैनी या डर से किसी भी काम में मन नहीं लगता है। मन असंतुलित या चित्त में अशांति रहती है।
मानसिक अशांति का मूल कारण और परिणाम-
सभी सुख सुविधाएँ, या बाहरी वातावरण से प्रभावित होना ही हमारी मन की शांति को लुप्त कर देता है | अतः हम यह कह सकते हैं कि हमारी आध्यात्मिकता से विमुखता और बढ़ती हुई उपभोक्तावादी मनोवृत्ति ही अशांति का मूल कारण है। अक्सर यह देखा जाता है कि जो लोग तनावग्रस्त होते हैं, चिंतित-डरे हुए रहते हैं, शराब या नशा करते हैं, क्लब या कहीं घूमने-फिरने जाते हैं| लेकिन फिर भी उनका टेंशन खत्म नहीं होता। जैसे ही परिस्थितियाँ हावी होती है फिर से मन अशांत हो जाता है।
इससे बचने के उपाय –
परिस्थिति के बदलने से या मन को बहलाने से शांति नहीं मिलती है, मन:स्थिति या मन को बदलने से ही समस्या का समाधान होता है। मन में बदलाव बाहर के साधनों से नहीं धर्म की आराधना से होता है। धर्म हमें चीजों को समझने की शक्ति देता है। हम धर्म को जाने, सत्संग समागम करें, ध्यान करें, आध्यात्मिक चिंतन करें और जीवन की व्यवस्था को समझें। ये सब हमे अपने जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव में स्थिरता का बोध कराता है। मन में सकारात्मकता और धैर्य उत्पन्न होता है जो हमारे जीवन को उत्तम बना देता है और हमे जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग दिखता है| इसलिए हमे परिस्थिति नहीं मन:स्थिति को बदलना चाहिए |
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