व्रतों का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। व्रतों से ही जीवन की सार्थकता है। व्रत विहीन जीवन ब्रेक रहित गाड़ी की तरह है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी रूप में व्रतों का पालन करना चाहिए।
प्रायः व्रत-संयम की चर्चा आते ही लोग इसे खान-पान की शुद्धि तक सीमित मानकर इसे एक जटिल प्रक्रिया मानते हैं। जबकि अणुव्रतों का स्वरूप अत्यंत व्यापक है। एक दिन की हिंसा त्यागने वाले को यमपाल चांडाल को ही शास्त्रों में अणुव्रती कहा गया है।
परम पूज्य मुनि प्रमाण सागर जी महाराज ने बारह व्रतों की आधुनिक सन्दर्भ में व्याख्या कर इसे सर्व ग्राह्य और स्वीकार्य बना दिया है। मुनि श्री ने इन व्रतों की व्याख्या इस प्रकार की है कि साधारण व्यक्ति भी इनका पालन करके अपने जीवन का कल्याण कर सकता है। आप सभी सुधीजन व्रतों का पालन करें, इसी भाव से आपके लिए यह प्रस्तुत है।
ब्र. रोहित
पाँच अणुव्रत
अतिचार
१. वध – किसी को मरना, पीटना
२. बंधन – पालतू पशुओं और आश्रित कर्मियों को जरूरत से ज्यादा नियंत्रण में रखना
३. छेदन – दुर्भावनापूर्वक नाक-कान आदि छेदना, नकेल लगाना, नाथ देना आदि
४. अतिभारारोपण – किसी पर अधिक भार लादना
५. अन्न पान निरोध – पालतू पशुओं और नौकर-चाकरों को समय पर भोजन नहीं देना, ठीक भोजन नहीं देना
अतिचार
१. परिवाद– किसी के साथ गली-गलौच करना
२. रहोभ्याख्यान – दुसरो की गुप्त बातों को उजागर कर देना
३. पैशून्य – चुगल खोरी
४. कूटलेख करना – नकली दस्तावेज बनाना, झूठी गवाही देना, जाली मुहर लगाना (यथासंभव बचें)
५. न्यासापहार – दूसरों की धरोहर हड़प लेना
अतिचार
१. चौर प्रयोग – चोरी की योजना बनाना, चोरों को प्रोत्साहित करना
२. चौरार्थ आदान – चोरी का माल खरीदना
३. विलोप – राजकीय नियमों का उल्लंघन करना (यथासंभव बचें)
४. प्रतिरूपक व्यवहार – मिलावट करना
५. हीनाधिक मानोन्मान – नाप-तौल में कमती-बढ़ती करना, डंडी मारना
अतिचार
१. पर विवाह करण – अपने पारिवारिक दायित्व से बहार के लोगों के शादी विवाह करने में रुचि लेना
२. इत्वरिका गमन – गलत चाल वाले विवाहित स्त्री/पुरुषों के साथ उठना-बैठना
३. अनंगक्रीड़ा – अप्राकृतिक यौनाचार करना
४. विटत्व – भोड़ापन करना, फूहड़पन अपनाना, भांडगिरी करना
५. विपुलतृषा – काम की तीव्र लालसा रखना
अतिचार
१. अति वाहन – अधिक भाग-दौड़ करना
२. अति संग्रह – अधिक मुनाफाखोरी की चाहत में जरूरत से ज्यादा संग्रह करना
३. अति विस्मय – अधिक लाभ में हर्ष और दूसरे के अधिक लाभ में विषाद करना
४. अति लोभ – मन चाहा लाभ होने पर भी और अधिक लाभ की चाह होना
५. अतिभार वहन – नौकर-चाकर और पालतू पशुओं से जरूरत से ज्यादा काम लेना, उनसे अधिक भाग-दौड़ कराना
तीन गुणव्रत
अतिचार
१. उर्ध्व व्यतिक्रम – ऊपर की सीमा का उल्लंघन
२. अधो व्यतिक्रम – नीचे की सीमा का उल्लंघन
३. तिर्यक् व्यतिक्रम – तिरछी सीमा का उल्लंघन
४. क्षेत्र वृद्धि – लोभवश पूर्व निर्धारित क्षेत्र को बढ़ाना
५. स्मृत्यंतराधन – अपनी सीमा को भूल जाना
भेद
१. पापोपदेश – बिना प्रयोजन पाप पूर्ण व्यापर आदि की प्रेरणा देना
२. हिंसा दान – हिंसक उपकरणों को प्रदान करना
३. अपध्यान – व्यर्थ में किसी की जीत-हार आदि का विचार करना
४. दु:श्रुति – चित्त को कलुषित करने वाला साहित्य पढ़ना, T.V. देखना, गीत आदि सुंनना
५. प्रमादचर्या – बिना मतलब पानी बहाना, अग्नि जलाना, धरती खोदना, पंखा चलाना, वनस्पति तोड़ना उक्त पाँचों प्रकार के अनर्थदण्ड का त्याग
अतिचार
१. कन्दर्प – फूहड़ हँसी-मजाक से युक्त अशिष्ठ वचन कहना
२. कौतकुच्य – हँसी मजाक के साथ शारीरिक कुचेष्टा करना
३. मौखर्य – अधिक बकवाद करना
४. अतिप्रसाधन – भोगोपभोग की सामग्री का आवश्यकता से अधिक संग्रह करना
५. असमीक्ष्य-अधिकरण – प्रयोजनहीन अधिक प्रवृति करना
अतिचार
१. अनुपेक्षा – विषयों के प्रति उदासीनता न होना
२. अनुस्मृति – पूर्व में भोगे हुए विषयों की निरंतर स्मृति बने रहना
३. अति लौल्य – आगामी विषयों के प्रति अत्यधिक लोलुपता रखना
४. अति तृषा – भावी विषयों के प्रति तीव्र गृद्धता और तृष्णा का भाव रखना
५. अति अनुभव – विषयों का अति आसक्तिपूर्वक अनुभव करना
भोगोपभोग परिमाण व्रत इस प्रकार लें –
१-२. मद्य-माँस-मधु और मक्खन का आजीवन त्याग (त्रसघात और प्रमादवर्धक से बचने हेतु)
३. बहुविघात से बचने हेतु – सभी प्रकार के जमीकंद का त्याग करें तथा पत्तेदार सब्जियों का कम से कम बरसात में त्याग
४. अनुपसेव्य – शिष्टजनों द्वारा सेवन के अयोग्य स्वमूत्रपान आदि के सेवन का त्याग
५. अनिष्ट – जो अपने स्वास्थ्य के अनुकूल न हो उसका त्याग
प्रतिदिन के नियम
- भोजन – क्या और कितनी बार
- वाहन – कितने
- शयन – कितनी देर और किस प्रकार की शय्या
- स्नान – कितनी बार
- साबुन/तेल –
- पुष्प –
- प्रसाधन सामग्री –
- पान/सुपारी –
- आभूषण –
- टी. वी. देखना / गीत-नृत्य करना –
- काम सेवन / ब्रह्मचर्य –
उक्त बातों पर विचार करके अपनी सुविधानुसार सीमित समय के लिए नियम लेते रहें।
चार शिक्षाव्रत
अतिचार
१. आनयन – मर्यादित क्षेत्र के बाहर से किसी को बुलाना
२. प्रेष्य प्रयोग – मर्यादित क्षेत्र के बाहर किसी को भेजना
३. शब्दानुपात – मर्यादित क्षेत्र के बाहर शब्दों द्वारा संपर्क रखना, टेलीफोन/मोबाइल करना
४. रुपानुपात – मर्यादित क्षेत्र के बाहर स्थित व्यक्ति को अपने शारीरिक इशारे से अपनी ओर आकर्षित करना
५. पुद्गल क्षेप – मर्यादित क्षेत्र के बाहर स्थित व्यक्ति को कंकड़-पत्थर आदि फेंककर अपनी ओर आकृष्ट करना
अतिचार
१. वचन दुष्प्रणिधान – वचनों की खोटी प्रवृति यथा – कुछ का कुछ पाठ करने लगना, सामायिक में बोल देना आदि
२. काय दुष्प्रणिधान – सामायिक में शरीर को स्थिर न रखना, अंगड़ाई लेना, जम्हाईयाँ आदि लेना
३. मन दुष्प्रणिधान – मन में अस्थिरता रखकर इधर-उधर की बातें सोचना
४. अनादर – सामायिक में उत्साह न होना
५. अस्मरण – सामायिक पाठ आदि भूल जाना
अतिचार
१. बिना देखे – शोधे वस्तुओं को उठाना/ रखना
२. बिना देखे – शोधे अपने बिस्तर आदि को बिछाना
३. बिना देखे – शोधे अपने मल-मूत्र का त्याग करना
४. अनादर – सामायिक आदि आवश्यकों में आदर या उत्साह नहीं होना
५. अस्मरण – अपने आवश्यकों को ही भूल जाना
(कहीं बाहर जाना हो या ट्रेन पकड़नी हो तो उसकी छूट)
अतिचार
१. सचित्त निक्षेप – सचित्त पत्र आदि पर भोज्य पदार्थ रखना
२. सचित अविधान – सचित पत्र आदि से भोज्य पदार्थ ढकना
३. परव्यपदेश – स्वयं देने योग्य वस्तु को दूसरों से दिलाना
४. मात्सर्य – अन्य दाताओं के गुणों को न सह पाना
५. कालातिक्रम – आहार के काल का उल्लंघन कर पड़गाहन आदि करना
🙏🙏 गुनायतन प्रणेता शंका का समाधान भावना योग प्रवर्तक परमपूज्य मुनिश्री108 प्रमाणसागरजी महाराज कि ಜೈ ಹೋ. ಸಮಸ್ತ छूलक महाराज जी को Echami गुरूदेव. Bhaiyaji को ವಂದನಾ. गुरूदेव आप ने जो धर्म के मार्ग पर चलने का जो सूत्र दिया औ पाल रहे हैं. ऐसा ही हम धर्म के मार्ग पर चले हमे आशीर्वाद दीजिए कि मैं धर्म के मार्ग पर चलकर देश और समाज की सेवा मरते दम तक करूं.मैं स्वस्थ हूं मैं मस्त हूं.सबका कल्याण हो.ऐसा भावना भाता हूं. मैं हर दिन भावना योग कर्ता हूं 🙏🙏 नमोस्तु नमोस्तु गुरूदेव 🙏🙏.